हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 8.63.10

मंडल 8 → सूक्त 63 → श्लोक 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
अश्व॒मिद्गां र॑थ॒प्रां त्वे॒षमिन्द्रं॒ न सत्प॑तिम् । यस्य॒ श्रवां॑सि॒ तूर्व॑थ॒ पन्य॑म्पन्यं च कृ॒ष्टयः॑ ॥ (१०)
प्रजाएं अग्नि की स्तुति तेज चलने वाले घोड़े तथा सज्जनों का पालन करने वाले इंद्र के समान करती हैं. अग्नि हमारे रथों को धनों से भरते एवं शक्ति द्वारा शत्रु के अन्न और धन को नष्ट करते हैं. (१०)
The people praise agni like the fast-moving horse and the gentleman-abiding Indra. Fire fills our chariots with wealth and destroys the enemy's food and wealth by power. (10)