हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
इ॒मं नु मा॒यिनं॑ हुव॒ इन्द्र॒मीशा॑न॒मोज॑सा । म॒रुत्व॑न्तं॒ न वृ॒ञ्जसे॑ ॥ (१)
मैं यज्ञशाली, अपनी शक्ति द्वारा सब पर शासन करने वाले एवं मरुतों के साथ इंद्र को शत्रुओं का छेदन करने के लिए बुलाता हूं. (१)
I call indra, with the yajnashali, who ruled over all by my power and the maruts, to pierce the enemies. (1)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
अ॒यमिन्द्रो॑ म॒रुत्स॑खा॒ वि वृ॒त्रस्या॑भिन॒च्छिरः॑ । वज्रे॑ण श॒तप॑र्वणा ॥ (२)
इंद्र ने मरुतों के साथ मिलकर सौ पर्वो वाले वज्र द्वारा वृत्र का सिर काटा. (२)
Indra, along with the Maruts, cut off the head of the vritra with a thunderbolt of a hundred parvas. (2)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
वा॒वृ॒धा॒नो म॒रुत्स॒खेन्द्रो॒ वि वृ॒त्रमै॑रयत् । सृ॒जन्स॑मु॒द्रिया॑ अ॒पः ॥ (३)
इंद्र मरुतों की सहायता लेकर बढ़े. इंद्र ने वृत्र का सिर काटा और अंतरिक्ष का जल बनाया. (३)
Indra grew up with the help of the Maruts. Indra cut off the head of the vritra and created the water of space. (3)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
अ॒यं ह॒ येन॒ वा इ॒दं स्व॑र्म॒रुत्व॑ता जि॒तम् । इन्द्रे॑ण॒ सोम॑पीतये ॥ (४)
ये इंद्र वह ही हैं, जिन्होंने मरुतों को साथ लेकर सोमरस पीने के लिए स्वर्ग को जीता था. (४)
This Indra is the one who won heaven to drink somras with the maruts. (4)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
म॒रुत्व॑न्तमृजी॒षिण॒मोज॑स्वन्तं विर॒प्शिन॑म् । इन्द्रं॑ गी॒र्भिर्ह॑वामहे ॥ (५)
हम मरुतों से युक्त, ऋजीष के भागी, वृद्धियुक्त एवं महान्‌ इंद्र को स्तुतियों द्वारा बुलाते हैं. (५)
We call the lord, the parti of the sage, the rising and the great Indra, with praises. (5)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
इन्द्रं॑ प्र॒त्नेन॒ मन्म॑ना म॒रुत्व॑न्तं हवामहे । अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥ (६)
हम इस सोम को पीने के लिए मरुतों सहित इंद्र को प्राचीन स्तोत्रों द्वारा बुलाते हैं. (६)
We call Indra by ancient hymns including the maruts to drink this soma. (6)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
म॒रुत्वा॑ँ इन्द्र मीढ्वः॒ पिबा॒ सोमं॑ शतक्रतो । अ॒स्मिन्य॒ज्ञे पु॑रुष्टुत ॥ (७)
हे फलदायक, शतक्रतु, मरुतों से युक्त एवं बहुतों द्वारा बुलाए गए इंद्र! तुम इस यज्ञ में आकर सोमरस पिओ. (७)
O fruitful, Sathirattu, Indra, possessed of the maruts and called by many! You come to this yagna and drink somras. (7)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
तुभ्येदि॑न्द्र म॒रुत्व॑ते सु॒ताः सोमा॑सो अद्रिवः । हृ॒दा हू॑यन्त उ॒क्थिनः॑ ॥ (८)
हे वज्रधारी इंद्र! मरुतों सहित तुम्हारे लिए सोमरस निचोड़ा गया है. उक्थ मंत्र बोलने वाले लोग मन से तुम्हें बुलाते हैं. (८)
O thunderbolt Indra! The somras have been squeezed for you including the maruts. People who speak the Ukth mantra call you from the heart. (8)
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