ऋग्वेद (मंडल 8)
वि वृत्रं पर्वशो ययुर्वि पर्वताँ अराजिनः. चक्राणा वृष्णि पौंस्यम्. (२३)
स्वामीरहित एवं शक्तिशाली उत्साह का प्रदर्शन करते हुए मरुतों ने पर्वत के समान वृत्र के टुकड़ेटुकड़े कर दिए थे. (२३)
Displaying the masterless and powerful enthusiasm, the Maruts had chopped the vritra into pieces like a mountain. (23)