हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 79
आ नो॒ विश्वा॑सु॒ हव्य॒ इन्द्रः॑ स॒मत्सु॑ भूषतु । उप॒ ब्रह्मा॑णि॒ सव॑नानि वृत्र॒हा प॑रम॒ज्या ऋची॑षमः ॥ (१)
सभी युद्धों में बुलाने योग्य इंद्र हमारी स्तुतियों का अनुभव करें. इंद्र वृत्रनाशक, विशाल ज्या वाले एवं स्तुतियों द्वारा अभिमुख करने योग्य हैं. (१)
Experience our praises of Indra, the summonable Indra in all wars. Indra is averter, possessed by giant sine and is liable to be oriented by praises. (1)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 79
त्वं दा॒ता प्र॑थ॒मो राध॑साम॒स्यसि॑ स॒त्य ई॑शान॒कृत् । तु॒वि॒द्यु॒म्नस्य॒ युज्या वृ॑णीमहे पु॒त्रस्य॒ शव॑सो म॒हः ॥ (२)
हे इंद्र! तुम सबसे मुख्य, धनदाता एवं सत्य हो. तुम स्तोताओं को ऐश्वर्य वाला बनाओ. हे बहुत धन वाले, बल के पुत्र एवं महान्‌ इंद्र! हम तुम्हारे योग्य धन को वरण करते हैं. (२)
O Indra! You are the most important, the giver and the truth. You make the psalms with splendor. O you of great wealth, the son of strength and the great Indra! We choose your worthy wealth. (2)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 79
ब्रह्मा॑ त इन्द्र गिर्वणः क्रि॒यन्ते॒ अन॑तिद्भुता । इ॒मा जु॑षस्व हर्यश्व॒ योज॒नेन्द्र॒ या ते॒ अम॑न्महि ॥ (३)
हे स्तुति योग्य एवं हरि नामक अश्चों वाले इंद्र! हम तुम्हारे गुणों से पूर्ण स्तुतियां करते हैं. वे तुमसे मिलने योग्य हैं. उन्हें तुम स्वीकार करो. हम तुम्हारे लिए जितनी स्तुतियां कर रहे हैं, उन्हें स्वीकार करो. (३)
O Indra of praise and with tears called Hari! We make full praises of your qualities. They deserve to meet you. Accept them to you. Accept all the praises we are doing for you. (3)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 79
त्वं हि स॒त्यो म॑घव॒न्नना॑नतो वृ॒त्रा भूरि॑ न्यृ॒ञ्जसे॑ । स त्वं श॑विष्ठ वज्रहस्त दा॒शुषे॒ऽर्वाञ्चं॑ र॒यिमा कृ॑धि ॥ (४)
हे सत्यशील, धनस्वामी एवं किसी से न दबने वाले इंद्र! तुम अनेक राक्षसों का नाश करते हो. हे हाथ में व्र धारण करने वाले एवं अतिशय शक्तिशाली इंद्र! तुम हव्यदाता यजमान को सामने जाने वाला धन दो. (४)
O Satyasheel, Dhanaswami and Indra who is not suppressed by anyone! You destroy many monsters. O indra who holds a whar in his hand and is very powerful! You give the money to the paying host to go in front of you. (4)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 79
त्वमि॑न्द्र य॒शा अ॑स्यृजी॒षी श॑वसस्पते । त्वं वृ॒त्राणि॑ हंस्यप्र॒तीन्येक॒ इदनु॑त्ता चर्षणी॒धृता॑ ॥ (५)
हे शक्ति के स्वामी एवं ऋषीज के अधिकारी इंद्र! तुम यशस्वी बनो. तुमने अकेले ही शत्रुओं की हिंसा करने वाले वञ्र द्वारा ऐसे राक्षसों को मारा जिन पर न कोई आक्रमण कर सकता था और न जिन्हें कोई जीत सकता था. (५)
O Lord of power and ruler of sages Indra! You be successful. You alone killed demons that no one could attack or conquer by the violence of enemies. (5)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 79
तमु॑ त्वा नू॒नम॑सुर॒ प्रचे॑तसं॒ राधो॑ भा॒गमि॑वेमहे । म॒हीव॒ कृत्तिः॑ शर॒णा त॑ इन्द्र॒ प्र ते॑ सु॒म्ना नो॑ अश्नवन् ॥ (६)
हे शक्तिशाली एवं उत्तमज्ञान वाले इंद्र! हम तुमसे पैतृक संपत्ति के समान धन मांगते हैं. तुम्हारा घर तुम्हारे यश के समान विशालरूप से अंतरिक्ष में स्थित है. तुम्हारे सुख हमें प्राप्त करें. (६)
O wise and mighty Indra! We ask you for the same wealth as ancestral property. Your house is located in space as vastly as your glory. May your happiness get us. (6)