ऋग्वेद (मंडल 8)
वि॒द्मा हि यस्ते॑ अद्रिव॒स्त्वाद॑त्तः सत्य सोमपाः । विश्वा॑सु दस्म कृ॒ष्टिषु॑ ॥ (१८)
हे वज्रधारी, यथार्थ कर्म वाले, सोमरस पीने वाले एवं दर्शनीय इंद्र! सभी यजमानों के पास तुम्हारा दिया हुआ जो धन है, हम उसीको जानते हैं. (१८)
O vajradhari, those with real deeds, those who drink somras and see indra! We know the wealth you have given to all hosts. (18)