हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
या इ॑न्द्र॒ भुज॒ आभ॑रः॒ स्व॑र्वा॒ँ असु॑रेभ्यः । स्तो॒तार॒मिन्म॑घवन्नस्य वर्धय॒ ये च॒ त्वे वृ॒क्तब॑र्हिषः ॥ (१)
हे सुखयुक्त एवं धनस्वामी इंद्र! तुम असुरों के पास से जो धन छीन लाये हो, उस धन से स्तोता को बढ़ाओ. वह स्तोता तुम्हारे लिए कुश बिछा चुका है. (१)
O happy and rich Indra! Increase the hymn with the money you have taken away from the asuras. That hymn has laid the cushion for you. (1)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
यमि॑न्द्र दधि॒षे त्वमश्वं॒ गां भा॒गमव्य॑यम् । यज॑माने सुन्व॒ति दक्षि॑णावति॒ तस्मि॒न्तं धे॑हि॒ मा प॒णौ ॥ (२)
हे इंद्र! तुम्हारे पास जो घोड़े, गाएं एवं अविनाशी धन है, वह सोमरस निचोड़ने वाले तथा दक्षिणा देने वाले यजमान को दो, दान न करने वाले पणि को मत दो. (२)
O Indra! Give the horses, cows and indestructible wealth that you have, to the host who squeezes the somras and gives dakshina, and do not give it to the non-donating pany. (2)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
य इ॑न्द्र॒ सस्त्य॑व्र॒तो॑ऽनु॒ष्वाप॒मदे॑वयुः । स्वैः ष एवै॑र्मुमुर॒त्पोष्यं॑ र॒यिं स॑नु॒तर्धे॑हि॒ तं ततः॑ ॥ (३)
हे इंद्र! देवों की अभिलाषा न करने वाला एवं यज्ञरहित जो व्यक्ति स्वप्न देखने के लिए सोता है, वह अपनी गतियों द्वारा ही अपने पोषण योग्य धन का नाश करे. तुम उसे कर्मरहित प्रदेश में भेजो. (३)
O Indra! A person who does not desire the gods and who sleeps to dream, let him destroy his nourishing wealth through his own movements. You send him to the land without work. (3)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
यच्छ॒क्रासि॑ परा॒वति॒ यद॑र्वा॒वति॑ वृत्रहन् । अत॑स्त्वा गी॒र्भिर्द्यु॒गदि॑न्द्र के॒शिभिः॑ सु॒तावा॒ँ आ वि॑वासति ॥ (४)
हे शक्तिशाली एवं वृत्रहंता इंद्र! तुम चाहे दूर रहो अथवा पास में रहो, सोमरस निचोड़ने वाला यजमान उन हरि नामक घोड़ों द्वारा तुम्हें यज्ञ में ले जाता है, जिनके बाल धरती से आकाश की ओर जाते हैं. (४)
O mighty and victorious Indra! Whether you stay away or live nearby, the host of the Somras squeezes takes you to the yagna by horses called Hari, whose hair goes from the earth to the sky. (4)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
यद्वासि॑ रोच॒ने दि॒वः स॑मु॒द्रस्याधि॑ वि॒ष्टपि॑ । यत्पार्थि॑वे॒ सद॑ने वृत्रहन्तम॒ यद॒न्तरि॑क्ष॒ आ ग॑हि ॥ (५)
हे शत्रुनाशकों में शरेष्ठ इंद्र! तुम चाहे स्वर्ग के दीप्ति वाले स्थान में हो, चाहे समुद्र के बीच किसी स्थान में हो, चाहे धरती के किसी स्थान में हो अथवा अंतरिक्ष में हो, हमारे पास आओ. (५)
O Indra, the one who is the one who is one of the enemies! Whether you are in the bright place of heaven, whether in a place in the middle of the sea, whether you are in some place on earth or in space, come to us. (5)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
स नः॒ सोमे॑षु सोमपाः सु॒तेषु॑ शवसस्पते । मा॒दय॑स्व॒ राध॑सा सू॒नृता॑व॒तेन्द्र॑ रा॒या परी॑णसा ॥ (६)
हे सोमरस पीने वाले एवं शक्ति के स्वामी इंद्र! सोमरस निचुड़ जाने पर तुम बलसाधक एवं शोभन वचन वाले अन्न तथा पर्याप्त धन द्वारा हमें प्रमुदित करो. (६)
O Somras, drinker and lord of power Indra! When you go to Somers, you make us happy with strong and good worded food and enough money. (6)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
मा न॑ इन्द्र॒ परा॑ वृण॒ग्भवा॑ नः सध॒माद्यः॑ । त्वं न॑ ऊ॒ती त्वमिन्न॒ आप्यं॒ मा न॑ इन्द्र॒ परा॑ वृणक् ॥ (७)
हे इंद्र! हमारा त्याग मत करो. हमारे साथ सोमरस पीकर तुम प्रसन्न बनो. तुम ही हमारे रक्षक बनो. तुम्हीं हमारे बंधु हो. तुम हमारा त्याग मत करो. (७)
O Indra! Don't abandon us. Be pleased to drink somras with us. You become our protector. You are our brother. You don't abandon us. (7)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
अ॒स्मे इ॑न्द्र॒ सचा॑ सु॒ते नि ष॑दा पी॒तये॒ मधु॑ । कृ॒धी ज॑रि॒त्रे म॑घव॒न्नवो॑ म॒हद॒स्मे इ॑न्द्र॒ सचा॑ सु॒ते ॥ (८)
हे इंद्र! सोमरस निचुड़ जाने पर मधुर सोम पीने के लिए तुम हमारे साथ बैठो. हे धनस्वामी इंद्र! स्तोता को विशाल रक्षासाधन दो एवं सोमरस निचुड़ जाने पर हमारे साथ बैठो. (८)
O Indra! You sit with us to drink the sweet mon on the go to Someras Nikud. O Dhanaswami Indra! Give the vast rakshasadhan to The Stota and sit with us on our way to Someras Nichud. (8)
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