हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 75
अ॒भि प्रि॒याणि॑ पवते॒ चनो॑हितो॒ नामा॑नि य॒ह्वो अधि॒ येषु॒ वर्ध॑ते । आ सूर्य॑स्य बृह॒तो बृ॒हन्नधि॒ रथं॒ विष्व॑ञ्चमरुहद्विचक्ष॒णः ॥ (१)
अन्न के लिए हितकारी सोम संसार के प्रिय एवं नीचे बहने वाले जलों के चारों ओर टपकते हैं. महान्‌ सोम जलों के भीतर बढ़ते हैं. सबको देखने वाले सोम महान्‌ सूर्य के विशाल एवं सब ओर चलने वाले रथ पर चढ़ते हैं. (१)
The beneficial mons for food drip around the beloved and flowing waters of the world. Great som grows within the waters. The Soms who see all climb the huge and all-round chariot of the great sun. (1)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 75
ऋ॒तस्य॑ जि॒ह्वा प॑वते॒ मधु॑ प्रि॒यं व॒क्ता पति॑र्धि॒यो अ॒स्या अदा॑भ्यः । दधा॑ति पु॒त्रः पि॒त्रोर॑पी॒च्यं१॒॑ नाम॑ तृ॒तीय॒मधि॑ रोच॒ने दि॒वः ॥ (२)
सत्यरूप यज्ञ की जिह्वा के समान सोम प्यारा एवं मादक रस टपकाते हैं. सोम शब्द करने वाले, इस यज्ञकर्म के पालक एवं राक्षसों द्वारा अपराजेय हैं. द्युलोक को दीप्त करने वाला सोम जब निचोड़ा जाता है, तब यजमान ऐसा नाम धारण करता है जिसे उसके माता- पिता भी नहीं जानते. (२)
Like the tongue of satyarup yajna, som drips cute and intoxicating juices. Those who do the word Soma are invincible by the guardians and demons of this yajnakarma. When the soma who illuminates the dulok is squeezed, the host holds a name that even his parents do not know. (2)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 75
अव॑ द्युता॒नः क॒लशा॑ँ अचिक्रद॒न्नृभि॑र्येमा॒नः कोश॒ आ हि॑र॒ण्यये॑ । अ॒भीमृ॒तस्य॑ दो॒हना॑ अनूष॒ताधि॑ त्रिपृ॒ष्ठ उ॒षसो॒ वि रा॑जति ॥ (३)
यज्ञ का दोहन करने वाले ऋत्विज्‌ दीप्तिशाली एवं नेताओं द्वारा स्वर्णमय चमड़े पर रखे गए सोम को निचोड़ते हैं. सोम शब्द करते हुए ट्रोणकलश की ओर जाते हैं. तीनों सवनों में वर्तमान सोम यज्ञ के दिन प्रातःकाल सुशोभित होते हैं. (३)
The devotees exploiting the yajna squeeze the mon placed on golden leather by the bright and the leaders. The word Som goes towards the tronkalsh while doing the word. In all the three saavans, the present day of Som Yajna is adorned in the morning. (3)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 75
अद्रि॑भिः सु॒तो म॒तिभि॒श्चनो॑हितः प्ररो॒चय॒न्रोद॑सी मा॒तरा॒ शुचिः॑ । रोमा॒ण्यव्या॑ स॒मया॒ वि धा॑वति॒ मधो॒र्धारा॒ पिन्व॑माना दि॒वेदि॑वे ॥ (४)
पत्थरों की सहायता से निचोड़े गए, अन्न के लिए हितकारक एवं शुद्ध सोम जगत्‌ का निर्माण करने वाली द्यावा-पृथिवी को प्रकाशित करके भेड़ के बालों से बने दशापवित्र पर जाते हैं एवं जल से मिली हुई मादक सोम की धार प्रतिदिन दशापवित्र पर गिरती है. (४)
Squeezed with the help of stones, beneficial for food and creating pure Soma Jagat, they go to the Dashapavitra made of sheep's hair and the edge of intoxicating Soma mixed with water falls on the Dashapavitra every day. (4)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 75
परि॑ सोम॒ प्र ध॑न्वा स्व॒स्तये॒ नृभिः॑ पुना॒नो अ॒भि वा॑सया॒शिर॑म् । ये ते॒ मदा॑ आह॒नसो॒ विहा॑यस॒स्तेभि॒रिन्द्रं॑ चोदय॒ दात॑वे म॒घम् ॥ (५)
हे सोम! हमारे कल्याण के लिए चारों ओर दौड़ो. तुम यज्ञकर्म के नेताओं द्वारा पवित्र होकर दूध, दही को ढको. तुम्हारे जो शब्दयुक्त, शत्रुघातक एवं महान्‌ रस हैं, उनके कारण इंद्र को प्रेरित करो कि वे हमें महान्‌ धन दें. (५)
Hey Mon! Run around for our well-being. You cover the milk, curd by being sanctified by the leaders of the yajnakarma. Inspire Indra to give us great wealth because of the words, the enemies and the great rasas that you have. (5)