सामवेद (अध्याय 10)
स्वरन्ति त्वा सुते नरो वसो निरेक उक्थिनः । कदा सुतं तृषाण ओक आ गम इन्द्र स्वब्दीव वँसगः ॥ (४)
हे इंद्र! आप सर्वत्र वास करते हैं. आप सब को वास देते हैं. यजमान सोमरस चढ़ा कर आप की उपासना करते हैं. आप बैलों की तरह आवाज करते हुए अपने बेटों के यहां कब पधारने की कृपा करेंगे? (४)
O Indra! You live everywhere. You give everyone a residence. The host worships you by offering somras. When would you be pleased to come to your sons' place, sounding like bulls? (4)