हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद (अध्याय 12)

सामवेद: | खंड: 1
गोवित्पवस्व वसुविद्धिरण्यविद्रेतोधा इन्दो भुवनेष्वर्पितः । त्वँ सुवीरो असि सोम विश्ववित्तं त्वा नर उप गिरेम आसते ॥ (१)
हे सोम! आप गौ दूध मिश्रित, पवित्र, सर्वज्ञाता, श्रेष्ठ पथ पर जाने वाले व सभी लोकों में व्याप्त हैं. सभी उपासक आप की उपासना करते हैं. (१)
O Mon! You are mixed with cow milk, pure, omniscient, going on the best path and pervading all the worlds. All worshipers worship you. (1)

सामवेद (अध्याय 12)

सामवेद: | खंड: 1
त्वं नृचक्षा असि सोम विश्वतः पवमान वृषभ ता वि धावसि । स नः पवस्व वसुमद्धिरण्यवद्वयँ स्याम भुवनेषु जीवसे ॥ (२)
हे सोम! आप पवित्र, स्फूर्तिदायी, सर्वव्यापक व सर्वज्ञाता हैं. आप दोड़ते हुए हमारे पास पधारिए. आप हमें धनवान बनाइए. आप की कृपा से हम सभी लोकों में श्रेष्ठ जीवन जीएं. (२)
O Mon! You are pure, energetic, omnipresent and omniscient. You come to us running. You make us rich. By your grace, let us live a superior life in all the worlds. (2)

सामवेद (अध्याय 12)

सामवेद: | खंड: 1
ईशान इमा भुवनानि ईयसे युजान इन्दो हरितः सुपर्ण्यः । तास्ते क्षरन्तु मधुमद्घृतं पयस्तव व्रते सोम तिष्ठन्तु कृष्टयः ॥ (३)
हे सोम! आप सभी लोकों के ईश्वर, हरे, सर्वत्र व्याप्त एवं मधुरता युक्त हैं. आप के रस की धार निरंतर झरे. आप की कृपा से यजमान अपने व्रत (संकल्पो) को पूरा करने में लगे रहें. (३)
O Mon! You are the God of all the worlds, green, everywhere and sweet. The edge of your juice is constantly jarred. By your grace, the host should be engaged in fulfilling his fast (resolutions). (3)

सामवेद (अध्याय 12)

सामवेद: | खंड: 1
पवमानस्य विश्ववित्प्र ते सर्गा असृक्षत । सूर्यस्येव न रश्मयः ॥ (४)
हे सोम! आप पवित्र व सर्वज्ञाता हैं. सूर्य की तरह आप की किरणें (रशिभियां) स्वर्ग से फैल रही हैं. (४)
O Mon! You are holy and omniscient. Like the sun, your rays are spreading from heaven. (4)

सामवेद (अध्याय 12)

सामवेद: | खंड: 1
केतुं कृण्वं दिवस्परि विश्वा रूपाभ्यर्षसि । समुद्रः सोम पिन्वसे ॥ (५)
हे सोम! आप सर्वव्यापक और स्वर्गलोक के ऊपर किरणों के रूप में व्याप्त हैं. आप बरसात के रूप में पानी बरसा कर हमें संपन्नता देते हैं. (५)
O Mon! You are omnipresent and pervaded as rays over paradise. You give us prosperity by showering water in the form of rain. (5)

सामवेद (अध्याय 12)

सामवेद: | खंड: 1
जज्ञानो वाचमिष्यसि पवमान विधर्मणि । क्रन्दं देवो न सूर्यः ॥ (६)
हे सोम! आप सूर्य जैसे दीप्तिमान हैं. आप वाणी से पवित्रता को प्राप्त होते हैं. आप आवाज करते हुए द्रोणकलश में जाते हैं. (६)
O Mon! You are as bright as the sun. You attain purity through speech. You go to Dronakalsh while making a sound. (6)

सामवेद (अध्याय 12)

सामवेद: | खंड: 1
प्र सोमासो अधन्विषुः पवमानास इन्दवः । श्रीणाना अप्सु वृञ्जते ॥ (७)
हे सोम! आप पवित्र व शीतल हैं. आप जल के साथ द्रोणकलश में परस्पर मिश्रित हो रहे हैं. (७)
O Mon! You are pure and cool. You are getting mixed with water in Dronakalsh. (7)

सामवेद (अध्याय 12)

सामवेद: | खंड: 1
अभि गावो अधन्विषुरापो न प्रवता यतीः । पुनाना इन्द्रमाशत ॥ (८)
हे इंद्र! आप के भक्षण (पीने) के लिए सोमरस नीचे बरतन में शुद्ध हो कर पहुंच रहा है. (८)
O Indra! You have to eat (drink) somerus is reaching down to be pure in the vessel. (8)
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