सामवेद (अध्याय 13)
तं त्वा विप्रा वचोविदः परिष्कृण्वन्ति धर्णसिम् । सं त्वा मृजन्त्यायवः ॥ (२)
हे सोम! आप संसार के धारक व वाणी के ज्ञाता हैं. याजक आप को भलीभांति परिष्कृत कर रहे हैं. (२)
O Mon! You are the holder of the world and the knower of speech. The priests are refining you well. (2)