सामवेद (अध्याय 16)
एतं मृजन्ति मर्ज्यमुप द्रोणेष्वायवः । प्रचक्राणं महीरिषः ॥ (३)
यजमान सोमरस को परिष्कृत कर के द्रोणकलश में भरते हैं. यह रसीला व अन्नों को उत्पन्न करने वाला है. (३)
The host refines someras and fills it in dronalakash. It is succulent and food-producing. (3)