हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 16.8.4

अध्याय 16 → खंड 8 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 16)

सामवेद: | खंड: 8
महाँ इन्द्रो य ओजसा पर्जन्यो वृष्टिमाँ इव । स्तोमैर्वत्सस्य वावृधे ॥ (४)
इंद्र महान व प्रकाशमान हैं. वे अपने प्रिय भक्तों की स्तुतियों से बढ़ोतरी पाते हैं. वे बरसने वाले बादलों की भांति हैं. उपासक उन के पुत्र की तरह है. (४)
Indra is great and enlightening. They get increased by the praises of their beloved devotees. They are like rain clouds. The worshipper is like the son of them. (4)