हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
उपप्रयन्तो अध्वरं मन्त्रं वोचेमाग्नये । आरे अस्मे च श‍ृण्वते ॥ (१)
अग्नि उत्तम यज्ञ करने वाले यजमान की प्रार्थना सुनने के लिए तैयार हैं. हम उन की उपासना करते हैं. (१)
Agni is ready to listen to the prayers of the host performing the best yajna. We worship them. (1)

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
यः स्नीहितीषु पूर्व्यः सञ्जग्मानासु कृष्टिषु । अरक्षद्दाशुषे गयम् ॥ (२)
अग्नि हमेशा प्रकाशित रहते हैं. यजमान जब प्रेम भाव से मिल कर रहते हैं तो वे उन के वैभव की रक्षा करते हैं. (२)
Agni is always illuminated. When the hosts live together with love, they protect their splendor. (2)

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
स नो वेदो अमात्यमग्नी रक्षतु शन्तमः । उतास्मान्पात्वँहसः ॥ (३)
अग्नि बहुत कल्याणकारी हैं. वे हमें पापों (बुरी प्रवृत्तियों) से दूर करने व हमारे वैभव की रक्षा करने में हमारी सहायता करने की कृपा करें. (३)
Agni is very welfare. May they be pleased to help us away from sins (evil tendencies) and protect our splendour. (3)

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
उत ब्रुवन्तु जन्तव उदग्निर्वृत्रहाजनि । धनञ्जयो रणेरणे ॥ (४)
अन्ने युद्धों में दुश्मनों को हराते हैं व उन का धन जीतते हैं. वे प्रकट हो गए हैं. मंत्र गायक पुरोहित को उन की स्तुति करनी चाहिए. (४)
In their wars, they defeat the enemies and win their wealth. They have appeared. The mantra singer purohit should praise them. (4)

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
अग्ने युङ्क्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः । अरं वहन्त्याशवः ॥ (५)
हे अग्नि! आप के घोड़े शीघ्र जाने वाले हैं. आप के घोड़े भी सामर्थ्यवान हैं. आप उन को रथ में जोतिए. (५)
O agni! Your horses are going to leave soon. Your horses are also powerful. You plough them in the chariot. (5)

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
अच्छा नो याह्या वहाभि प्रयाँसि वीतये । आ देवान्त्सोमपीतये ॥ (६)
हे अग्नि! आप सोमपान व देवताओं को हमारी ओर उन्मुख करने की कृपा कीजिए. (६)
O agni! Please orient Sompan and the gods towards us. (6)

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
उदग्ने भारत द्युमदजस्रेण दविद्युतत् । शोचा वि भाह्यजर ॥ (७)
हे अग्नि! आप जग के पालक व अक्षुण्ण (कभी क्षीण न हो सकने वाले) हैं. आप भी प्रकाशित होइए और जग को भी प्रकाशित कीजिए. आप प्रज्वलित हो कर उत्तरोत्तर बढ़ोतरी प्राप्त कीजिए. (७)
O agni! You are the guardian and intact (never-to-be-waning) of the jug. You also publish and publish the world too. You ignite and get progressive increase. (7)

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
प्र सुन्वानायान्धसो मर्त्तो न वष्ट तद्वचः । अप श्वानमराधसँ हता मखं न भृगवः ॥ (८)
सोमरस रसीला व सेवन के योग्य है. सोम के लिए की गई प्रार्थनाओं को लालची कुत्ते न सुन सकें. भृगु ऋषि ने जैसे मख नामक राक्षस को मारा था, वैसे ही आप उन कुत्तों को अपराधी की तरह ही दंडित कीजिए. (८)
Somerus is succulent and worthy of consumption. Greedy dogs cannot hear the prayers made for Som. Just like Bhrigu Rishi killed a demon named Makh, you punish those dogs like criminals. (8)
Page 1 of 2Next →