सामवेद (अध्याय 2)
सुनीथो घा स मर्त्यो यं मरुतो यमर्यमा । मित्रास्पान्त्यद्रुहः ॥ (३)
हे इंद्र! द्रोह (द्वेष) न करने वाले मरुत्, अर्यमा और मित्र देवता जिस की रक्षा करते हैं, वह यजमान निश्चय ही अच्छी राह पर चलने वाला होता है. (३)
O Indra! The host, who protects the desert, aryama and friendly gods who do not hate, is definitely going to walk on a good path. (3)