सामवेद (अध्याय 2)
बृबदुक्थँ हवामहे सृप्रकरस्नमूतये । साधः कृण्वन्तमवसे ॥ (४)
लोक की रक्षा और पालन के लिए हम साधन सहित इंद्र को आमंत्रित करते हैं. इंद्र की बहुत स्तुति की जाती है. (४)
We invite Indra with the means to protect and follow the people. Indra is highly praised. (4)