सामवेद (अध्याय 20)
अग्ने विश्वेभिरग्निभिर्जोषि ब्रह्म सहस्कृत । ये देवत्रा य आयुषु तेभिर्नो महया गिरः ॥ (१)
हे अग्नि! आप सभी अग्नियों के साथ हमारी प्रार्थनाओं को सुनिए व प्रार्थनाओं की महिमा बढ़ाइए. जो अग्नि स्वरूप हैं, जो मनुष्यों में हैं उन सब से हमारा अनुरोध है. (१)
O agni! Listen to our prayers with all the agnis and increase the glory of the prayers. We request all those who are in the form of agni, those who are in human beings. (1)
सामवेद (अध्याय 20)
प्र स विश्वेभिरग्निभिरग्निः स यस्य वाजिनः । तनये तोके अस्मदा सम्यङ्वाजैः परीवृतः ॥ (२)
यज्ञ की अग्नि शक्तिशाली है. उस में सभी हवि भेंट करते हैं. वे अग्नि अन्य सभी अग्नियों सहित शक्ति से घिर कर हमारे कल्याण हेतु पधारने व हमारे सज्जनों (पुत्रों) का भी कल्याण करने की कृपा करें. (२)
The agni of yajna is powerful. In that all the havis offer. May those agnis surrounded by power along with all other agnis come for our welfare and also to do the welfare of our gentlemen (sons). (2)
सामवेद (अध्याय 20)
त्वं नो अग्ने अग्निभिर्ब्रह्म यज्ञं च वर्धय । त्वं नो देवतातये रायो दानाय चोदय ॥ (३)
हे अग्नि! आप अन्य देवताओं को हमें धनदान करने के लिए प्रेरित करने की कृपा कीजिए. आप अन्य अग्नियों सहित हमारे आत्म ज्ञान व यज्ञ की भी बढ़ोतरी करने की कृपा कीजिए. (३)
O agni! Please encourage other gods to donate money to us. Please increase our self-knowledge and sacrifice along with other agnis. (3)
सामवेद (अध्याय 20)
त्वे सोम प्रथमा वृक्तबर्हिषो महे वाजाय श्रवसे धियन् दधुः । स त्वं नो वीर वीर्याय चोदय ॥ (४)
हे सोम! प्रमुख यजमान अन्न बल के बारे में आप के लिए श्रेष्ठ बुद्धि धारण करते हैं. आप हम वीरों को (और अधिक) वीरता के लिए प्रोत्साहित करने की कृपा कीजिए. (४)
O Mon! The main hosts possess the best intelligence for you about the food force. Please encourage us heroes to (more) heroes. (4)
सामवेद (अध्याय 20)
अभ्यभि हि श्रवसा ततर्दिथोत्सं न कं चिज्जनपानमक्षितम् । शर्याभिर्न भरमाणो गभस्त्योः ॥ (५)
हे सोम! आप का रस छनछन कर छलनी से टपकता हुआ द्रोणकलश को उसी तरह लबालब भर देता है, पीने वाले जल को चुल्लू से डालडाल कर जैसे पानी के हौज को पूरा भर देते हैं. (५)
O Mon! Your juice filters and fills the dronalash dripping from the sieve in the same way, by pouring the drinking water with a chullu, filling the water tank completely. (5)
सामवेद (अध्याय 20)
अजीजनो अमृत मर्त्याय अमृतस्य धर्मन्नमृतस्य चारुणः । सदासरो वाजमच्छा सनिष्यदत् ॥ (६)
हे सोम! आप अमृतमय हैं. आप मनुष्यों के लिए सत्य और मंगलकारी तत्त्व धारण करते हैं. आप ने सूर्य को प्रकट किया, देवगण की सेवा की और सदैव यजमानों को अन्न, धन देने हेतु लालायित रहते हैं. (६)
O Mon! You are nectar. You possess true and auspicious elements for human beings. You have revealed the sun, served the gods and are always eager to give food and money to the hosts. (6)
सामवेद (अध्याय 20)
एन्दुमिन्द्राय सिञ्चत पिबाति सोम्यं मधु । प्र राधाँसि चोदयते महित्वना ॥ (७)
हे यजमानो! आप इंद्र को सोमरस से सींचिए. वे मधुर सोम रस को पीते हैं. वे अपने महत्त्व से धनों को आप लोगों (के पास आने) के लिए प्रेरित करते हैं. (७)
O hosts! You water Indra with someras. They drink sweet som rasa. They inspire the money to come to you people by their importance. (7)
सामवेद (अध्याय 20)
उपो हरीणां पतिँ राधः पृञ्चन्तमब्रवम् । नूनँ श्रुधि स्तुवतो अश्व्यस्य ॥ (८)
हे इंद्र! आप अश्वपति व धनपति हैं. हम आप के लिए प्रार्थनाएं बोलते हैं. आप स्तुति करते हुए अश्व्य ऋषि की स्तुति अवश्य ही सुनने की कृपा कीजिए. (८)
O Indra! You are ashwapati and dhanpati. We speak prayers for you. Please listen to the praise of the inaudible sage while praising you. (8)