हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 21.2.1

अध्याय 21 → खंड 2 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 21)

सामवेद: | खंड: 2
इनो राजन्नरतिः समिद्धो रौद्रो दक्षाय सुषुमाँ अदर्शि । चिकिद्वि भाति भासा बृहतासिक्नीमेति रुशतीमपाजन् ॥ (१)
हे अग्नि! आप राजा और शत्रुओं के लिए भयानक हैं. आप यजमानों की मनोकामना पूरी करते हैं. आप चकित करने वाले आप भास्कर (प्रकाशमान) व विशाल हैं. आप रात्रि में हवन के लिए चमकते हैं. (१)
O agni! You are terrible for kings and enemies. You fulfill the wishes of the hosts. You are the astonishing ones, bhaskar (prakashman) and vishal. You shine for havan at night. (1)