सामवेद (अध्याय 22)
अया रुचा हरिण्या पुनानो विश्वा द्वेषाँसि तरति सयुग्वभिः सूरो न सयुग्वभिः । धारा पृष्ठस्य रोचते पुनानो अरुषो हरिः । विश्वा यद्रूपा परियास्यृक्वभिः सप्तास्येभिरृक्वभिः ॥ (६)
हे सोम! आप का रस रुचिपूर्ण है व हरित आभा वाला है. आप उस से द्वेषियों का वैसे ही संहार करते हैं, जैसे सूर्य अपनी किरणों से अंधेरे का संहार करते हैं. आप का रस प्रकाशमान है. छलनी पर आप की धारा प्रकाशमान है. आगेपीछे सब ओर आप की धारा शोभित होती है. आप अपने सात मुखों से निकलने वाली सात किरणों से कहीं ज्यादा प्रकाशमान व उत्तम हैं. (६)
O Mon! Your juice is interesting and has a green aura. You kill haters like the sun kills darkness with its rays. Your juice is shining. The stream of you on the sieve is illuminating. Your stream is adorned all over the back. You are brighter and better than the seven rays emanating from your seven mouths. (6)