सामवेद (अध्याय 22)
प्राचीमनु प्रदिशं पाति चेकितत्सँ रश्मिभिर्यतते दर्शतो रथो दैव्यो दर्शतो रथः । अग्मन्नुक्थानि पौँस्येन्द्रं जैत्राय हर्षयत । वज्रश्च यद्भवथो अनपच्युता समत्स्वनपच्युता ॥ (७)
हे सोम! आप पूर्व दिशा में प्रस्थान करते हैं. तब आप का रथ बहुत चमकता है. आप का रथ दिव्य व दर्शनीय है. यजमान मंत्र गागा कर अपनी स्तुतियां आप और इंद्र तक पहुंचाते हैं. यजमान विजय पाने की इच्छा से आप को प्रसन्न करते हैं. वे आप से वज्ज प्राप्त करते हैं. आप दोनों मिल कर किसी भी युद्ध में यजमान को हारने नहीं देते हैं. (७)
O Mon! You depart in the east direction. Then your chariot shines a lot. Your chariot is divine and visible. The host conveys his praises to you and Indra by singing the mantra. The host pleases you with the desire to win. They get a joke from you. You both do not let the host lose in any war together. (7)