सामवेद (अध्याय 23)
वषट् ते विष्णवास आ कृणोमि तन्मे जुषस्व शिपिविष्ट हव्यम् । वर्धन्तु त्वा सुष्टुतयो गिरि मे यूयं पात स्वस्तभिः सदा नः ॥ (११)
हे विष्णु! वषट्कार से हम आप को आमंत्रित करते हैं. आप रश्मिवान हैं. आप हमारी हवि को स्वीकारिए. हमारी अच्छी स्तुतियां आप की बढ़ोतरी करें. आप मंगलकारी आशीर्वादों से हमारा कल्याण करने की कृपा कीजिए. (११)
O Vishnu! We invite you from all sides. You are Rashmivan. You accept our desire. May our good praises enhance yours. Please do us well-being with your auspicious blessings. (11)