सामवेद (अध्याय 26)
तव द्रप्सो नीलवान्वाश ऋत्विय इन्धानः सिष्णवा ददे । त्वं महीनामुषसामसि प्रियः क्षपो वस्तुषु राजसि ॥ (२)
हे अग्नि! आप को सोमरस से सींचा जाता है. वह प्रवहमान, इच्छित व प्रकाशमान है. उस को आप के लिए तैयार किया जाता है. आप महिमा वाली उषा देवियों के प्रिय हैं. आप रात को वस्तुओं में शोभित होते हैं. (२)
O agni! You are watered with somers. It is moving, desired and illuminating. That is prepared for you. You are dear to the glory Usha goddesses. You are adorned with objects at night. (2)