हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 4.12.10

अध्याय 4 → खंड 12 → मंत्र 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 4)

सामवेद: | खंड: 12
तव त्यन्नर्यं नृतोऽप इन्द्र प्रथमं पूर्व्यं दिवि प्रवाच्यं कृतम् । यो देवस्य शवसा प्रारिणा असु रिणन्नपः । भुवो विश्वमभ्यदेवमोजसा विदेदूर्जँ शतक्रतुर्विदेदिषम् ॥ (१०)
हे इंद्र! आप सर्वश्रेष्ठ, अपूर्व, दिव्य व मनुष्यों के लिए कल्याणकारी हैं. स्वर्ग में आप की प्रशंसा होती है. आप ने शत्रुनाश किया. शत्रुओं को हराया. आप ने जल प्रवाहित किया. आप सैकड़ों कर्म करने वाले हैं. आप सर्वज्ञाता हैं. आप अपने बल के साथ पधारिए. आप हमारी हवि स्वीकारने की कृपा कीजिए. (१०)
O Indra! You are the best, the unique, the divine and the benefactor for human beings. You are admired in heaven. You destroyed the enemy. Defeat the enemies. You have flowed water. You are going to do hundreds of deeds. You are omniscient. You come with your strength. Please accept our wish. (10)