हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 4.2.1

अध्याय 4 → खंड 2 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 4)

सामवेद: | खंड: 2
प्रप्र वस्त्रिष्टुभमिषं वन्दद्वीरायेन्दवे । धिया वो मेधसातये पुरन्ध्या विवासति ॥ (१)
हे यजमानो! आप वीर इंद्र को हवि प्रदान करो. वे यज्ञ को पूरा करने में बुद्धि से किए गए श्रेष्ठ कार्यो की प्रशंसा व मनोकामनाएं पूरी करते हैं. वे यजमानों का सम्मान करते हैं. (१)
O hosts! You give the heroic Indra a boost. They praise and fulfill the wishes of the best work done with intelligence in completing the yajna. They respect the hosts. (1)