हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 6.3.8

अध्याय 6 → खंड 3 → मंत्र 8 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 6)

सामवेद: | खंड: 3
प्रक्षस्य वृष्णो अरुषस्य नू महः प्र नो वचो विदथा जातवेदसे । वैश्वानराय मतिर्नव्यसे शुचिः सोम इव पवते चारुरग्नये ॥ (८)
अग्नि सर्वत्र व्याप्त व प्रकाशमान हैं. हम उन की स्तुति करते हैं. हम यज्ञ में उन के लिए स्तोत्र गाते हैं. वे सभी मनुष्यों का हित करने वाले हैं. उन के पास स्तोत्र वैसे ही जाते हैं, जैसे यज्ञ में सोम जाते हैं. (८)
Agni is everywhere and illuminating. We praise them. We sing stotras for them in the yagna. They are going to benefit all human beings. Stotras go to them in the same way as Soma goes in the yagna. (8)