ऋग्वेद (मंडल 1)
यु॒वं भु॒ज्युं भु॒रमा॑णं॒ विभि॑र्ग॒तं स्वयु॑क्तिभिर्नि॒वह॑न्ता पि॒तृभ्य॒ आ । या॒सि॒ष्टं व॒र्तिर्वृ॑षणा विजे॒न्यं१॒॑ दिवो॑दासाय॒ महि॑ चेति वा॒मवः॑ ॥ (४)
हे कामवर्षको! तुमने घोड़ों द्वारा लाए हुए एवं सागर में डूबे हुए भुज्यु को अपने स्वयं युक्त घोड़ों द्वारा लाकर उनके पिता के समीप, दूरस्थ घर में पहुंचा दिया था. तुमने दिवोदास की जो महती रक्षा की थी, उसे हम जानते हैं. (४)
O work years! You brought Bhujyu, brought by horses and drowned in the sea, by your own horses, to a remote house near his father. We know the great protection you gave to Divodas. (4)