हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.123.2

मंडल 1 → सूक्त 123 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 123
पूर्वा॒ विश्व॑स्मा॒द्भुव॑नादबोधि॒ जय॑न्ती॒ वाजं॑ बृह॒ती सनु॑त्री । उ॒च्चा व्य॑ख्यद्युव॒तिः पु॑न॒र्भूरोषा अ॑गन्प्रथ॒मा पू॒र्वहू॑तौ ॥ (२)
गमनशील प्रकाश द्वारा अंधकार पर विजय प्राप्त करने वाली, महती एवं विश्व को सुख देने वाली उषा समस्त प्राणियों से पहले जागती है. वह नित्य यौवना उषा पुनः पुनः उत्पन्न होती है. सारे संसार को देखती हुई वह हमारे एक बार बुलाने पर ही आ जाती है. (२)
Usha, who conquers darkness by the moving light, who has conquered darkness, gives joy to the world and awakens before all beings. That routine youthful usha is re-generated. Looking at the whole world, she comes only when we call once. (2)