ऋग्वेद (मंडल 1)
एन्द्र॑ या॒ह्युप॑ नः परा॒वतो॒ नायमच्छा॑ वि॒दथा॑नीव॒ सत्प॑ति॒रस्तं॒ राजे॑व॒ सत्प॑तिः । हवा॑महे त्वा व॒यं प्रय॑स्वन्तः सु॒ते सचा॑ । पु॒त्रासो॒ न पि॒तरं॒ वाज॑सातये॒ मंहि॑ष्ठं॒ वाज॑सातये ॥ (१)
हे इंद्र! यज्ञशाला में ऋत्विजों के पालक यज्ञमान के समान, अस्ताचल को जाने वाले नक्षत्रेश चंद्र के समान एवं सम्मुख उपस्थित सोम के समान स्वर्ग से हमारे समीप आओ. जिस प्रकार पुत्र अन्न भक्षण के लिए पिता को बुलाते हैं, उसी प्रकार हम भी सोमरस निचुड़ जाने पर तुम्हें बुलाते हैं. हम ऋत्विजों के साथ महान् इंद्र को हव्य स्वीकार करने के लिए बुलाते हैं. (१)
O Indra! Like the yajnaman, the guardian of the Ritvijas in the yajnashala, like the Nakshatrash Chandra going to astachal and like the som in front of us, come to us from heaven. Just as the sons call upon the Father to eat food, so we also call you when we go to Someras. We call the great Indra along with the Ritvijs to accept the havya. (1)
ऋग्वेद (मंडल 1)
पिबा॒ सोम॑मिन्द्र सुवा॒नमद्रि॑भिः॒ कोशे॑न सि॒क्तम॑व॒तं न वंस॑गस्तातृषा॒णो न वंस॑गः । मदा॑य हर्य॒ताय॑ ते तु॒विष्ट॑माय॒ धाय॑से । आ त्वा॑ यच्छन्तु ह॒रितो॒ न सूर्य॒महा॒ विश्वे॑व॒ सूर्य॑म् ॥ (२)
हे शोभन गति संपन्न इंद्र! जिस प्रकार प्यासा बैल जल पीता है, उसी प्रकार तुम तृप्ति, पराक्रम, महत्त्व एवं आनंद के लिए पत्थर द्वारा पीसकर निचोड़े गए एवं जल द्वारा शोधित सोमरस को पिओ. हरि नाम के घोड़े जिस प्रकार सूर्य को बुलाते हैं, उसी प्रकार तुम्हारे घोड़े तुम्हें सोमरस पीने के लिए लावें. (२)
O sociable indra with a good speed! Just as a thirsty bull drinks water, so you drink someras, crushed by stone and refined by water, for fulfillment, valour, importance and pleasure. Just as the horses named Hari call the sun, so should your horses bring you to drink somers. (2)
ऋग्वेद (मंडल 1)
अवि॑न्दद्दि॒वो निहि॑तं॒ गुहा॑ नि॒धिं वेर्न गर्भं॒ परि॑वीत॒मश्म॑न्यन॒न्ते अ॒न्तरश्म॑नि । व्र॒जं व॒ज्री गवा॑मिव॒ सिषा॑स॒न्नङ्गि॑रस्तमः । अपा॑वृणो॒दिष॒ इन्द्रः॒ परी॑वृता॒ द्वार॒ इषः॒ परी॑वृताः ॥ (३)
जिस प्रकार कबूतरी दुर्गम स्थान में अपने बच्चों को रखकर उस अपरिचित स्थान को खोज लेती है, वैसे ही इंद्र ने अत्यंत गुप्त स्थान में रखा हुआ तथा पत्थरों के ढेर से घिरा हुआ सोम स्वर्ग में प्राप्त किया. पणियों ने गायों को गोशाला में बंद कर दिया था. अंगिराओं में श्रेष्ठ इंद्र ने जिस प्रकार उस गोशाला को खोज लिया, उसी प्रकार सोमरस को भी ढूंढ. अन्न के कारण जल को मेघ ने रोक लिया था. इंद्र ने मेघ का भेदन करके जल बरसाया और धरती पर अन्न का विस्तार किया. (३)
Just as the dove finds the unfamiliar place by placing his children in a difficult place, Indra, kept in a very secret place and surrounded by a pile of stones, attained The Mon in heaven. The pangs had locked the cows in the goshala. Just as Indra, the superior of the Angiras, discovered the goshala, so did Someras. The water was stopped by the cloud because of the food. Indra pierced the cloud and poured out water and expanded the grain on the earth. (3)
ऋग्वेद (मंडल 1)
दा॒दृ॒हा॒णो वज्र॒मिन्द्रो॒ गभ॑स्त्योः॒ क्षद्मे॑व ति॒ग्ममस॑नाय॒ सं श्य॑दहि॒हत्या॑य॒ सं श्य॑त् । सं॒वि॒व्या॒न ओज॑सा॒ शवो॑भिरिन्द्र म॒ज्मना॑ । तष्टे॑व वृ॒क्षं व॒निनो॒ नि वृ॑श्चसि पर॒श्वेव॒ नि वृ॑श्चसि ॥ (४)
इंद्र अपने हाथों में वज्र को दृढ़ता से धारण किए हैं. वज्र तेज है. जैसे मंत्रों की सहायता से जल को प्रभावशाली बनाया जाता है, उसी प्रकार शत्रु पर चलाने के लिए वज्र को और भी तेज किया जाता है. हे इंद्र! जैसे बढ़ई कुल्हाड़ी से वन के वृक्षों को काटता है, उसी प्रकार तुम अपने तेज, शरीर, बल एवं शक्ति से बुद्धि प्राप्त करके हमारे शत्रुओं को छिन्न करते हो. (४)
Indra is firmly holding the vajra in his hands. The thunderbolt is fast. Just as water is made effective with the help of mantras, so the thunderbolt is intensified to run on the enemy. O Indra! Just as a carpenter cuts down the trees of the forest with an axe, so you snatch away our enemies by gaining wisdom with your speed, body, strength and power. (4)
ऋग्वेद (मंडल 1)
त्वं वृथा॑ न॒द्य॑ इन्द्र॒ सर्त॒वेऽच्छा॑ समु॒द्रम॑सृजो॒ रथा॑ँ इव वाजय॒तो रथा॑ँ इव । इ॒त ऊ॒तीर॑युञ्जत समा॒नमर्थ॒मक्षि॑तम् । धे॒नूरि॑व॒ मन॑वे वि॒श्वदो॑हसो॒ जना॑य वि॒श्वदो॑हसः ॥ (५)
हे इंद्र! जिस प्रकार तुमने हमारे यज्ञ में आने के लिए रथ को बनाया है अथवा योद्धा संग्राम में जाने को रथ बनाता है. उसी प्रकार तुमने समुद्र तक पहुंचने के साधन के रूप में नदियों का निर्माण किया है. जिस प्रकार मनु के लिए अथवा किसी समर्थ पुरुष के लिए गाएं सर्वार्थ देने वाली हैं, उसी प्रकार हमारी ओर बहने वाली नदियां एक ही उद्देश्य से जल का संग्रह करती हैं. (५)
O Indra! Just as you have made a chariot to come to our yagna or a chariot to go to the warrior battle. In the same way you have built rivers as a means of reaching the sea. Just as cows for Manu or for a capable man are a universal giver, so the rivers that flow towards us store water for the same purpose. (5)
ऋग्वेद (मंडल 1)
इ॒मां ते॒ वाचं॑ वसू॒यन्त॑ आ॒यवो॒ रथं॒ न धीरः॒ स्वपा॑ अतक्षिषुः सु॒म्नाय॒ त्वाम॑तक्षिषुः । शु॒म्भन्तो॒ जेन्यं॑ यथा॒ वाजे॑षु विप्र वा॒जिन॑म् । अत्य॑मिव॒ शव॑से सा॒तये॒ धना॒ विश्वा॒ धना॑नि सा॒तये॑ ॥ (६)
हे इंद्र! जिस प्रकार शोभन कर्म वाले धीर मनुष्य रथ का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार हम यजमानों ने धन प्राप्ति की इच्छा से तुम्हारी स्तुति बनाई है एवं अपनी सुख प्राप्ति के लिए तुम्हें प्रसन्न कर लिया है. जिस प्रकार योद्धा विजयी की प्रशंसा करते हैं, उसी प्रकार हे मेधासंपन्न इंद्र! तुम्हारी प्रशंसा की जा रही है. जैसे युद्ध के समय जयशील अश्च प्रशंसित होता है, उसी प्रकार बल, धन की रक्षा एवं समस्त कल्याण पाने के लिए तुम्हारी प्रशंसा हो रही है. (६)
O Indra! Just as the patient people of shobhan karma build the chariot, so we hosts have made you praise by the desire to gain wealth and have made you happy for our happiness. Just as the warriors praise the victorious, so do O Rainbow! You are being praised. Just as the glorious assh is admired in the time of war, so you are being praised for protecting strength, money and getting all the welfare. (6)
ऋग्वेद (मंडल 1)
भि॒नत्पुरो॑ नव॒तिमि॑न्द्र पू॒रवे॒ दिवो॑दासाय॒ महि॑ दा॒शुषे॑ नृतो॒ वज्रे॑ण दा॒शुषे॑ नृतो । अ॒ति॒थि॒ग्वाय॒ शम्ब॑रं गि॒रेरु॒ग्रो अवा॑भरत् । म॒हो धना॑नि॒ दय॑मान॒ ओज॑सा॒ विश्वा॒ धना॒न्योज॑सा ॥ (७)
हे रण में तीव्रता से इधर-उधर घूमने वाले इंद्र! तुमने यज्ञ में हविदान करने वाले एवं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करने वाले राजा दिवोदास के निमित्त उसके शत्रुओं के नब्बे नगरों का ध्वंस किया था. हे विराटू बल संपन्न इंद्र! तुमने अतिथिसेवक दिवोदास राजा के कल्याण के लिए शंबर असुर को पर्वत से नीचे गिरा दिया था एवं अपनी शक्ति से अपरिमित धन दिया था. वह धन थोड़ा नहीं, संपूर्ण था. (७)
O Indra who moves around in the rann intensity! You destroyed ninety cities of his enemies for king Divodas, who performed havan in the yagna and did your will. O glorious Indra! You had thrown the Shambar Asura down from the mountain for the welfare of the visiting divodas king and gave unlimited wealth with your power. That money was not a little, not a whole. (7)
ऋग्वेद (मंडल 1)
इन्द्रः॑ स॒मत्सु॒ यज॑मान॒मार्यं॒ प्राव॒द्विश्वे॑षु श॒तमू॑तिरा॒जिषु॒ स्व॑र्मीळ्हेष्वा॒जिषु॑ । मन॑वे॒ शास॑दव्र॒तान्त्वचं॑ कृ॒ष्णाम॑रन्धयत् । दक्ष॒न्न विश्वं॑ ततृषा॒णमो॑षति॒ न्य॑र्शसा॒नमो॑षति ॥ (८)
हे इंद्र! युद्ध में आर्य यजमान की रक्षा करते हैं. अपने भक्तों की अनेक प्रकार से रक्षा करने वाले इंद्र उसे समस्त युद्धों में बचाते हैं एवं सुखकारी संग्रामो में उसकी रक्षा करते हैं. इंद्र ने अपने भक्तों के कल्याण के निमित्त यज्ञद्वेषियों की हिंसा की थी. इंद्र ने कृष्ण नामक असुर की काली खाल उतारकर उसे अंशुमती नदी के किनारे मारा और भस्म कर दिया. इंद्र ने सभी हिंसक मनुष्यों को नष्ट कर डाला. (८)
O Indra! In war, the Aryans protect the host. Indra, who protects his devotees in many ways, saves him in all wars and protects him in happy battles. Indra had committed the violence of the yagnadweshis for the welfare of his devotees. Indra took off the black skin of the asura named Krishna and killed him on the banks of the River Anshumati and consumed him. Indra destroyed all violent human beings. (8)