ऋग्वेद (मंडल 1)
यु॒वं वस्त्रा॑णि पीव॒सा व॑साथे यु॒वोरच्छि॑द्रा॒ मन्त॑वो ह॒ सर्गाः॑ । अवा॑तिरत॒मनृ॑तानि॒ विश्व॑ ऋ॒तेन॑ मित्रावरुणा सचेथे ॥ (१)
हे मित्र और वरुण! तुम दोनों मोटे एवं तेजस्वी वस्त्र धारण करो. तुम्हारे द्वारा की गई सृष्टियां निर्दोष एवं मनोहर हैं. तुम दोनों समस्त असत्यों का विनाश करके हमें सत्यों से युक्त करो. (१)
Hey friend and Varun! You both wear thick and bright clothes. The creations you have made are innocent and beautiful. Both of you, destroy all the untruths and make us aware of the truths. (1)
ऋग्वेद (मंडल 1)
ए॒तच्च॒न त्वो॒ वि चि॑केतदेषां स॒त्यो मन्त्रः॑ कविश॒स्त ऋघा॑वान् । त्रि॒रश्रिं॑ हन्ति॒ चतु॑रश्रिरु॒ग्रो दे॑व॒निदो॒ ह प्र॑थ॒मा अ॑जूर्यन् ॥ (२)
हे मित्र और वरुण! तुम दोनों में से प्रत्येक विशेष रूप से कर्म करता है, सत्यभाषी, मननशील, मेधावियों द्वारा प्रशंसनीय एवं शत्रुनाशक है, चार अस्त्र धारण करके तीन अस्त्र धारण करने वालों का नाश करता है एवं प्रत्येक के सामर्थ्य से देवनिंदक लोग पहले ही समाप्त हो जाते हैं. (२)
Hey friend and Varun! Each of you performs particular deeds, the truthful, the meditative, the meritorious are praiseworthy and hostile, by the four astras, he destroys those who possess three weapons, and by the power of each of them the deities are already eliminated. (2)
ऋग्वेद (मंडल 1)
अ॒पादे॑ति प्रथ॒मा प॒द्वती॑नां॒ कस्तद्वां॑ मित्रावरु॒णा चि॑केत । गर्भो॑ भा॒रं भ॑र॒त्या चि॑दस्य ऋ॒तं पिप॒र्त्यनृ॑तं॒ नि ता॑रीत् ॥ (३)
हे मित्र और वरुण! चरणहीन उषा पैरों वाले मनुष्यों से पहले ही आ जाती है. ऐसा तुम्हारे ही कारण होता है, इस बात को कौन जानता है? तुम दोनों के पुत्र सूर्य सत्य की पूर्ति एवं असत्य का विरोध करने का भार धारण करते हैं. (३)
Hey friend and Varun! The stepless usha comes before the humans with feet. It's because of you, who knows that? The sun, the son of both of you, carries the burden of fulfilling the truth and resisting the untruth. (3)
ऋग्वेद (मंडल 1)
प्र॒यन्त॒मित्परि॑ जा॒रं क॒नीनां॒ पश्या॑मसि॒ नोप॑नि॒पद्य॑मानम् । अन॑वपृग्णा॒ वित॑ता॒ वसा॑नं प्रि॒यं मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धाम॑ ॥ (४)
हम कमनीय उषाओं के प्रेमी सूर्य को सदा चलता हुआ देखते है, कभी स्थिर नहीं देखते. विस्तृत तेज को धारण करने वाले सूर्य मित्र व वरुण के प्रिय हैं. (४)
We see the sun, the lover of the weak ushas, moving forever, never standing. Surya, who wears wide radiance, is dear to friend and Varuna. (4)
ऋग्वेद (मंडल 1)
अ॒न॒श्वो जा॒तो अ॑नभी॒शुरर्वा॒ कनि॑क्रदत्पतयदू॒र्ध्वसा॑नुः । अ॒चित्तं॒ ब्रह्म॑ जुजुषु॒र्युवा॑नः॒ प्र मि॒त्रे धाम॒ वरु॑णे गृ॒णन्तः॑ ॥ (५)
सूर्य अश्व एवं लगाम के अभाव में भी शीघ्र गमन करते हैं, जोर से गरजते हैं एवं क्रमशः ऊपर चढ़ते जाते हैं. लोग इन अचिंत्य एवं महान् कर्मो को मित्र एवं वरुण का समझकर बार- बार स्तुतियां करते हुए सेवा करते हैं. (५)
Even in the absence of a horse and a bridle, the sun moves quickly, roars loudly and climbs up gradually. People serve these unsung and great deeds as friends and varunas and praise them again and again. (5)
ऋग्वेद (मंडल 1)
आ धे॒नवो॑ मामते॒यमव॑न्तीर्ब्रह्म॒प्रियं॑ पीपय॒न्सस्मि॒न्नूध॑न् । पि॒त्वो भि॑क्षेत व॒युना॑नि वि॒द्वाना॒साविवा॑स॒न्नदि॑तिमुरुष्येत् ॥ (६)
यज्ञप्रिय एवं ममता के पुत्र दीर्घतमा की रक्षा करती हुई गाएं अपने थनों के दूध से उसे वृप्त करें. वे यज्ञानुष्ठान को जानती हुई दीर्घतमा के पिता एवं माता से हुतशेष अन्न खाने के लिए मांगें एवं तुम दोनों की सेवा करती हुई यज्ञ को अखंडित रूप से रक्षित करें. (६)
Protecting the yajnapriya and Mamta's son Longatama, sing and emulate him with the milk of his thrones. They know the yajnaanushthan and ask the father and mother of the long-term to eat the leftover food and preserve the yajna unbroken while serving both of you. (6)
ऋग्वेद (मंडल 1)
आ वां॑ मित्रावरुणा ह॒व्यजु॑ष्टिं॒ नम॑सा देवा॒वव॑सा ववृत्याम् । अ॒स्माकं॒ ब्रह्म॒ पृत॑नासु सह्या अ॒स्माकं॑ वृ॒ष्टिर्दि॒व्या सु॑पा॒रा ॥ (७)
हे मित्र और वरुण देवो! मैं अपनी रक्षा के निमित्त तुम्हारे प्रति नमस्कारयुक्त स्तोत्र से हव्य देने का प्रयत्न करूंगा. हमारा यह यज्ञकर्म युद्ध में शत्रुओं को हरावे एवं दिव्यवर्षा हमारा उद्धार करे. (७)
O friend and Varun Devo! I will try to convey my greetings to you with a hymn of greetings for the sake of my protection. May this sacrificial act of ours defeat the enemies in the war and may the divine rain save us. (7)