ऋग्वेद (मंडल 1)
गाय॒त्साम॑ नभ॒न्यं१॒॑ यथा॒ वेरर्चा॑म॒ तद्वा॑वृधा॒नं स्व॑र्वत् । गावो॑ धे॒नवो॑ ब॒र्हिष्यद॑ब्धा॒ आ यत्स॒द्मानं॑ दि॒व्यं विवा॑सान् ॥ (१)
हे इंद्र! उद्गाता सामवेद को इस प्रकार गाता है कि वह आकाश में गूंज जाए और आप उसे समझ लें. हम उस बढ़ते हुए सामगान की पूजा स्वर्ग के समान करते हैं. जिस प्रकार दुधारू और हिंसारहित गाएं अपने स्थान पर बैठती हैं, उसी प्रकार मैं तुम्हारी सेवा करता हूं. (१)
O Indra! Udgatta sings the Samaveda in such a way that it resonates in the sky and you understand it. We worship that growing samagan like heaven. Just as milch and violence-free cows sit in their place, so I serve you. (1)
ऋग्वेद (मंडल 1)
अर्च॒द्वृषा॒ वृष॑भिः॒ स्वेदु॑हव्यैर्मृ॒गो नाश्नो॒ अति॒ यज्जु॑गु॒र्यात् । प्र म॑न्द॒युर्म॒नां गू॑र्त॒ होता॒ भर॑ते॒ मर्यो॑ मिथु॒ना यज॑त्रः ॥ (२)
यजमान हव्य देने वाले अध्वर्यु को साथ लेकर इंद्र की पूजा करते हैं. वे सोचते हैं कि इंद्र प्यासे मृग के समान हव्य के प्रति शीघ्र आ जाएंगे. हे बलशाली इंद्र! स्तोत्र की इच्छा करने वाले देवों की स्तुति करता हुआ होता, यजमान एवं उसकी पत्नी भली प्रकार यज्ञ पूरा करते हैं. (२)
The hosts worship Indra by taking the giving of havan with adhwaryu. They think that Indra will soon come to Havya like a thirsty antelope. O mighty Indra! Praising the gods who wish for the psalms, the host and his wife perform the yajna well. (2)
ऋग्वेद (मंडल 1)
नक्ष॒द्धोता॒ परि॒ सद्म॑ मि॒ता यन्भर॒द्गर्भ॒मा श॒रदः॑ पृथि॒व्याः । क्रन्द॒दश्वो॒ नय॑मानो रु॒वद्गौर॒न्तर्दू॒तो न रोद॑सी चर॒द्वाक् ॥ (३)
हवन पूर्ण करने वाले अग्नि, गार्हपत्य आदि स्थानों के चारों ओर फैले हैं एवं वर्ष भर में धरती से उत्पन्न होने वाले अन्न को धारण करते हैं. अग्नि घोड़े और बैल की तरह शब्द करते हुए हवि का अन्न लेकर धरती और आकाश के मध्य में दूत के समान बातें करते हैं. (३)
The havan completes are spread around places like agni, garhapattya, etc. and hold the food that comes from the earth throughout the year. Fire takes the food of the havi and speaks like an angel between the earth and the sky, while saying words like horses and bulls. (3)
ऋग्वेद (मंडल 1)
ता क॒र्माष॑तरास्मै॒ प्र च्यौ॒त्नानि॑ देव॒यन्तो॑ भरन्ते । जुजो॑ष॒दिन्द्रो॑ द॒स्मव॑र्चा॒ नास॑त्येव॒ सुग्म्यो॑ रथे॒ष्ठाः ॥ (४)
हम इंद्र को लक्ष्य करके अत्यंत व्यापक हवि प्रदान करेंगे. देवों को अपने अनुकूल बनाने के लिए यजमान उत्तम स्तोत्र पढ़ते हैं. अश्विनीकुमारों के समान तेजस्वी, सुंदर एवं सुख से प्राप्त करने योग्य इंद्र रथ पर बैठकर हमारी स्तुतियों को सुनें. (४)
We will provide a very comprehensive havi by aiming at Indra. Hosts read the best hymns to make the gods friendly to them. Sit on a bright, beautiful and joyfully attainable Indra chariot like the Ashwinikumars and listen to our praises. (4)
ऋग्वेद (मंडल 1)
तमु॑ ष्टु॒हीन्द्रं॒ यो ह॒ सत्वा॒ यः शूरो॑ म॒घवा॒ यो र॑थे॒ष्ठाः । प्र॒ती॒चश्चि॒द्योधी॑या॒न्वृष॑ण्वान्वव॒व्रुष॑श्चि॒त्तम॑सो विह॒न्ता ॥ (५)
हे होता! इंद्र की स्तुति करो. वे अनंत शक्ति वाले, शूर, धनवान्, रथ पर स्थिर, सामने लड़ने वाले योद्धाओं में उत्तम, वञ्रधारणकर्ता एवं मेघ के विनाशक हैं. (५)
O Hota! Praise Indra. He is the best of the warriors who fight in front, with infinite power, the brave, rich, steady on a chariot, the bearer of the thunderbolt and the destroyers of the clouds. (5)
ऋग्वेद (मंडल 1)
प्र यदि॒त्था म॑हि॒ना नृभ्यो॒ अस्त्यरं॒ रोद॑सी क॒क्ष्ये॒३॒॑ नास्मै॑ । सं वि॑व्य॒ इन्द्रो॑ वृ॒जनं॒ न भूमा॒ भर्ति॑ स्व॒धावा॑ँ ओप॒शमि॑व॒ द्याम् ॥ (६)
इंद्र अपने महत्त्व के कारण यज्ञकर्ता यजमानों को स्वर्ग प्रदान करने में समर्थ हैं. धरती और आकाश उनके संचरण के लिए पर्याप्त नहीं हैं. जैसे बैल सींगों को धारण करता है, उसी प्रकार अन्न के स्वामी इंद्र स्वर्ग को धारण करते हैं. जैसे आकाश धरती को घेरे हुए है, उसी प्रकार इंद्र तीनों लोकों को व्याप्त करते हैं. (६)
Indra is able to give heaven to the sacrificing hosts because of his importance. The earth and the sky are not enough for their transmission. Just as the bull holds horns, so does Indra, the lord of the grain, hold heaven. Just as the sky surrounds the earth, so Indra encompasses the three realms. (6)
ऋग्वेद (मंडल 1)
स॒मत्सु॑ त्वा शूर स॒तामु॑रा॒णं प्र॑प॒थिन्त॑मं परितंस॒यध्यै॑ । स॒जोष॑स॒ इन्द्रं॒ मदे॑ क्षो॒णीः सू॒रिं चि॒द्ये अ॑नु॒मद॑न्ति॒ वाजैः॑ ॥ (७)
हे शूर इंद्र! तुम युद्धों में उन लोगों को बल प्रदान करते हो एवं उत्तम मार्ग दिखाते हो, जो तुम्हारा ही आश्रय लेकर युद्ध में प्रवृत्त होते हैं. तुम्हारी सेवा करके प्रसन्न होने वाले मरुद्गण युद्ध में प्रयत्न करते हैं. (७)
O Shur Indra! In wars, you give strength to those who take refuge in you and show the best way, who take refuge in you and go to war. The deserters who are pleased to serve you try in war. (7)
ऋग्वेद (मंडल 1)
ए॒वा हि ते॒ शं सव॑ना समु॒द्र आपो॒ यत्त॑ आ॒सु मद॑न्ति दे॒वीः । विश्वा॑ ते॒ अनु॒ जोष्या॑ भू॒द्गौः सू॒रीँश्चि॒द्यदि॑ धि॒षा वेषि॒ जना॑न् ॥ (८)
हे इंद्र! तुम्हारे उद्देश्य से किए गए सोम याग इस प्रकार सुखकर हों कि आकाश में स्थित दिव्य-जल प्रजाओं के कल्याण के लिए तुम्हें प्रसन्न करें. स्तोत्र रूपी समस्त वाणी तुम्हें प्रसन्न करे और तुम वर्षा करके स्तुतिकर्ता भक्तों की इच्छा पूरी करो. (८)
O Indra! May the som yags done for your purpose be so pleasant that the divine waters in the sky please you for the welfare of the people. May all the voice in the form of a hymn please you and you may do the will of the praise-giving devotees by raining. (8)