हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.185.7

मंडल 1 → सूक्त 185 → श्लोक 7 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 185
उ॒र्वी पृ॒थ्वी ब॑हु॒ले दू॒रेअ॑न्ते॒ उप॑ ब्रुवे॒ नम॑सा य॒ज्ञे अ॒स्मिन् । द॒धाते॒ ये सु॒भगे॑ सु॒प्रतू॑र्ती॒ द्यावा॒ रक्ष॑तं पृथिवी नो॒ अभ्वा॑त् ॥ (७)
मैं इस यज्ञ में नमस्कार संबंधी मंत्रों द्वारा विस्तृत, महान्‌, अनेक आकारों वाले तथा अंतहीन धरती और आकाश की स्तुति करता हूं. हे सौभाग्यसंपन्न एवं सुखपूर्वक तरने वाले धरती और आकाश! हमें पाप से बचाओ. (७)
In this yajna, I praise the vast, great, multi-sized and endless earth and sky through salutation mantras. O fortunate and pleasantly refreshing earth and sky! Save us from sin. (7)