ऋग्वेद (मंडल 1)
अ॒बु॒ध्ने राजा॒ वरु॑णो॒ वन॑स्यो॒र्ध्वं स्तूपं॑ ददते पू॒तद॑क्षः । नी॒चीनाः॑ स्थुरु॒परि॑ बु॒ध्न ए॑षाम॒स्मे अ॒न्तर्निहि॑ताः के॒तवः॑ स्युः ॥ (७)
शुद्ध बल के स्वामी वरुण मूलरहित आकाश में ठहर कर उत्तम तेज के समूह को ऊपर ही ऊपर धारण करते हैं. उस तेजसमूह की किरणों का मुख नीचे और जड़ें ऊपर हैं. उन्हीं के कारण हममें प्राण स्थित रहते हैं. (७)
Varuna, the lord of pure force, stays in the original sky and holds the group of the best of bright ones above the top. The rays of that bright group are facing down and the roots are up. Because of them, we have life in us. (7)