ऋग्वेद (मंडल 10)
वी॑न्द्र यासि दि॒व्यानि॑ रोच॒ना वि पार्थि॑वानि॒ रज॑सा पुरुष्टुत । ये त्वा॒ वह॑न्ति॒ मुहु॑रध्व॒राँ उप॒ ते सु व॑न्वन्तु वग्व॒नाँ अ॑रा॒धसः॑ ॥ (२)
हे बहुतों द्वारा प्रशंसित इंद्र! तुम दिव्य प्रकाश को धरती पर फैलाते हुए जाते हो. तुम्हारे घोड़े तुम्हें बार-बार ढोकर हमारे यज्ञ की ओर लावें. वे घोड़े हम धनहीन स्तोताओं को धनसंपन्न करें. (२)
O Indra admired by many! You go on spreading the divine light on the earth. May your horses carry you again and again to our yajna. Those horses we give wealth to the wealthless stoes. (2)