हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.64.4

मंडल 10 → सूक्त 64 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
क॒था क॒विस्तु॑वी॒रवा॒न्कया॑ गि॒रा बृह॒स्पति॑र्वावृधते सुवृ॒क्तिभिः॑ । अ॒ज एक॑पात्सु॒हवे॑भि॒रृक्व॑भि॒रहिः॑ श‍ृणोतु बु॒ध्न्यो॒३॒॑ हवी॑मनि ॥ (४)
विद्वान्‌ अग्नि किस प्रकार अनेक स्तोताओं वाले एवं किस स्तुति से वृद्धियुक्त होते हैं? बृहस्पति देव शोभन स्तुतियों से बढ़ते हैं. अजएकपात्‌ एवं अहिर्बु्य नामक देव आह्वान के समय हमारे द्वारा रचित शोभन-स्तोत्रों को सुनें. (४)
How do the learned agnis have many hymns and with which praise are incremental? Jupiter god sobhan grows with praises. Listen to the hymns we have composed at the time of the invoking of the God named Ajaekpata and Ahirbuya. (4)