ऋग्वेद (मंडल 10)
वै॒श्वा॒न॒रं क॒वयो॑ य॒ज्ञिया॑सो॒ऽग्निं दे॒वा अ॑जनयन्नजु॒र्यम् । नक्ष॑त्रं प्र॒त्नममि॑नच्चरि॒ष्णु य॒क्षस्याध्य॑क्षं तवि॒षं बृ॒हन्त॑म् ॥ (१३)
विद्वान् एवं यज्ञपात्र देवों ने जरारहित सूर्यरूपी वैश्वानर अग्नि को उत्पन्न किया. अग्नि ने प्राचीन, घूमने वाले, विस्तृत एवं महान् नक्षत्रों को देवों के सामने ही तेजहीन कर दिया. (१३)
The learned and sacrificial devas created the vaishvanar agni in the form of a slightly unblemished sun. The agni made the ancient, rotating, wide and great constellations bright before the gods. (13)