हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 2.34.4

मंडल 2 → सूक्त 34 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
पृ॒क्षे ता विश्वा॒ भुव॑ना ववक्षिरे मि॒त्राय॑ वा॒ सद॒मा जी॒रदा॑नवः । पृष॑दश्वासो अनव॒भ्ररा॑धस ऋजि॒प्यासो॒ न व॒युने॑षु धू॒र्षदः॑ ॥ (४)
मरुद्गण हव्यधारक यजमान के लिए मित्र के समान सारा जल ढोकर लाते हैं. मरुद्गण शीघ्र दान करने वाले, श्वेत बिंदुयुक्त अश्चों वाले, भ्रंशरहित धन वाले एवं सीधे चलने वाले घोड़ों की तरह पथिकों के सम्मुख जाते हैं. (४)
The deserters carry all the water for the host like a friend. Deserters face the pathiks like quick donating, white-dotted, without fault-free wealth, and walking straight horses. (4)