हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
प्र पर्व॑तानामुश॒ती उ॒पस्था॒दश्वे॑ इव॒ विषि॑ते॒ हास॑माने । गावे॑व शु॒भ्रे मा॒तरा॑ रिहा॒णे विपा॑ट् छुतु॒द्री पय॑सा जवेते ॥ (१)
विश्वामित्र बोले-“जिस प्रकार घुड़साल से छूटी हुई दो घोड़ियां एक-दूसरे से आगे बढ़ने की इच्छा से दौड़ती हैं अथवा बछड़ों को जीभ से चाटने की इच्छुक दो गाएं शीघ्र चलती हैं, उसी प्रकार दो सुंदर गायों जैसी सतलुज एवं व्यास नामक नदियां पर्वत की गोद से निकलकर समुद्र से मिलने की इच्छुक होकर तेज बहती हैं. (१)
Vishwamitra said, "Just as two horses left from the horse race with the desire to move ahead of each other, or two cows willing to lick the calves with their tongues move quickly, so the rivers of the two beautiful cows, the Sutlej and the Beas, like the two beautiful cows, come out of the lap of the mountain and want to meet the sea and flow fast. (1)

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
इन्द्रे॑षिते प्रस॒वं भिक्ष॑माणे॒ अच्छा॑ समु॒द्रं र॒थ्ये॑व याथः । स॒मा॒रा॒णे ऊ॒र्मिभिः॒ पिन्व॑माने अ॒न्या वा॑म॒न्यामप्ये॑ति शुभ्रे ॥ (२)
“हे इंद्र द्वारा प्रेरित दो नदियो! तुम इंद्र की आज्ञा की प्रार्थना करती हुई दो रथसवारों के समान सागर की ओर जाती हो, आपस में मिलती हुई, लहरों के द्वारा एक-दूसरे के प्रदेश को सींचती हुई एवं शोभायमान होती हो. (२)
"O two rivers inspired by Indra! You go to the ocean like two chariots, praying to Indra's command, joining each other, irrigating and adorning each other's land by the waves. (2)

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
अच्छा॒ सिन्धुं॑ मा॒तृत॑मामयासं॒ विपा॑शमु॒र्वीं सु॒भगा॑मगन्म । व॒त्समि॑व मा॒तरा॑ संरिहा॒णे स॑मा॒नं योनि॒मनु॑ सं॒चर॑न्ती ॥ (३)
“बछड़ों को चाटने की अभिलाषा करने वाली गायों के समान एक ही स्थान समुद्र का लक्ष्य करके बहने वाली सतलुज एवं महान्‌ सौभाग्यवती व्यास नदी को मैं प्राप्त हुआ हूं.” (3)
"I have received the Sutlej and the great Saubhagyavati Beas river, which is flowing at the same place as the cows who wish to lick the calves, aimed at the sea." (3)

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
ए॒ना व॒यं पय॑सा॒ पिन्व॑माना॒ अनु॒ योनिं॑ दे॒वकृ॑तं॒ चर॑न्तीः । न वर्त॑वे प्रस॒वः सर्ग॑तक्तः किं॒युर्विप्रो॑ न॒द्यो॑ जोहवीति ॥ (४)
नदियों ने कहा-“हम दोनों इस जल के द्वारा तृप्त होती हुई इंद्र द्वारा निर्मित सागर की ओर बहती हैं. हमारे गमन का अंत नहीं होगा. यह ब्राह्मण हम दोनों को किस अभिलाषा से पुकार रहा है?” (४)
The rivers said, "We both flow towards the ocean created by Indra, satiating through this water. There will be no end to our movement. With what desire is this Brahmin calling on both of us?" (4)

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
रम॑ध्वं मे॒ वच॑से सो॒म्याय॒ ऋता॑वरी॒रुप॑ मुहू॒र्तमेवैः॑ । प्र सिन्धु॒मच्छा॑ बृह॒ती म॑नी॒षाव॒स्युर॑ह्वे कुशि॒कस्य॑ सू॒नुः ॥ (५)
विश्वामित्र बोले-“हे जलपूर्ण सरिताओ! मेरा सोम तैयार करने संबंधी वचन सुनकर थोड़ी देर के लिए रुक जाओ. कुशिक का पुत्र मैं महान्‌ स्तुति द्वारा अपनी रक्षा की इच्छा करता हुआ सरिता को विशेष रूप से बुलाता हूं.” (५)
Vishwamitra said, "O watery saritas! Stop for a while by listening to my som preparation promise. Son of Kushik, I call Sarita specially, wishing to protect myself through the great praise." (5)

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
इन्द्रो॑ अ॒स्माँ अ॑रद॒द्वज्र॑बाहु॒रपा॑हन्वृ॒त्रं प॑रि॒धिं न॒दीना॑म् । दे॒वो॑ऽनयत्सवि॒ता सु॑पा॒णिस्तस्य॑ व॒यं प्र॑स॒वे या॑म उ॒र्वीः ॥ (६)
नदियों ने उत्तर दिया-“हाथ में वज्रधारण करने वाले इंद्र ने नदियों को रोकने वाले वृत्र को मारकर हम दोनों नदियों को बहाया था. समस्त विश्व के प्रेरक, शोभन हाथ वाले एवं तेजस्वी इंद्र ने हमें सागर की ओर बहाया है. उसी की आज्ञा मानती हुई हम जल से भरकर बहती हैं.” (६)
The rivers replied, "Indra, who carried the thunder in his hand, had flowed both of us rivers by killing the vartra that stopped the rivers. The inspiring, brave-handed and brilliant Indra of the whole world has led us to the ocean. Obeying him, we flow with water towards ocean." (6)

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
प्र॒वाच्यं॑ शश्व॒धा वी॒र्यं१॒॑ तदिन्द्र॑स्य॒ कर्म॒ यदहिं॑ विवृ॒श्चत् । वि वज्रे॑ण परि॒षदो॑ जघा॒नाय॒न्नापोऽय॑नमि॒च्छमा॑नाः ॥ (७)
“इंद्र ने अहि राक्षस को मारा था. उसके इस वीर कर्म को सदा कहना चाहिए. इंद्र ने चारों ओर बैठे हुए बाधाकारक असुरों को वज्र से मारा था. इसके बाद गमन का अभिलाषी जल बरसा.” (७)
"Indra had killed the ahi rakshasa. This heroic deed of his should always be said. Indra had hit the obstructing asuras sitting around with a thunderbolt. After that, it rained the desired water." (7)

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
ए॒तद्वचो॑ जरित॒र्मापि॑ मृष्ठा॒ आ यत्ते॒ घोषा॒नुत्त॑रा यु॒गानि॑ । उ॒क्थेषु॑ कारो॒ प्रति॑ नो जुषस्व॒ मा नो॒ नि कः॑ पुरुष॒त्रा नम॑स्ते ॥ (८)
“हे स्तोता! हमारा तुम्हारा जो संवाद हुआ है, इसे मत भूलना. भविष्य में होने वाले यज्ञों में स्तुति रचना करके तुम हमारी सेवा करो. हमें पुरुष के समान प्रगल्भ मत बनाओ. हम तुम्हें नमस्कार करती हैं.” (८)
"This stota! Don't forget the conversation we have had with you. May you serve us by creating praise in future yagnas. Don't make us as ugly as men. We greet you." (8)
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