ऋग्वेद (मंडल 3)
इन्द्रो॒तिभि॑र्बहु॒लाभि॑र्नो अ॒द्य या॑च्छ्रे॒ष्ठाभि॑र्मघवञ्छूर जिन्व । यो नो॒ द्वेष्ट्यध॑रः॒ सस्प॑दीष्ट॒ यमु॑ द्वि॒ष्मस्तमु॑ प्रा॒णो ज॑हातु ॥ (२१)
हे शूर एवं धनस्वामी इंद्र! हम शत्रुविनाशकारियों को श्रेष्ठ एवं विविध रक्षा उपायों द्वारा प्रसन्न करो. जो हमसे द्वेष करे, वे नीचे गिरे तथा हम जिससे द्वेष करें उसे आप त्याग दें (२१)
O Shur and Dhanaswami Indra! Let us please the enemy destroyers with the best and various defence measures. Those who hate us fall down, and let us forsake the one whom we hate.