ऋग्वेद (मंडल 3)
मि॒त्रस्य॑ चर्षणी॒धृतोऽवो॑ दे॒वस्य॑ सान॒सि । द्यु॒म्नं चि॒त्रश्र॑वस्तमम् ॥ (६)
वर्षा द्वारा मनुष्यों का पालन करने वाले मित्र का अन्न सबके द्वारा भोगयोग्य एवं उनका धन अतिशय कीर्तियुक्त है. (६)
The food of a friend who follows human beings by the rain is enjoyable by all and their wealth is very rich. (6)