ऋग्वेद (मंडल 4)
उषो॑ मघो॒न्या व॑ह॒ सूनृ॑ते॒ वार्या॑ पु॒रु । अ॒स्मभ्यं॑ वाजिनीवति ॥ (९)
हे धनस्वामिनी, प्रिय-सत्य-रूप वाली एवं अन्नवती उषा! तुम हमें अधिक मात्रा में शोभन धन दो. (९)
O dhanaswamini, dear-truth-forming and annavati usha! You give us more amount of money. (9)