ऋग्वेद (मंडल 5)
अश्वि॑ना॒वेह ग॑च्छतं॒ नास॑त्या॒ मा वि वे॑नतम् । ति॒रश्चि॑दर्य॒या परि॑ व॒र्तिर्या॑तमदाभ्या॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥ (७)
हे अश्चिनीकुमारो! इस यज्ञ में आओ. हे सत्य-स्वरूप वालो! तुम हमारे प्रति अभिलाषारहित मत होना. हे अपराजितो एवं स्वामियो! तुम छिपे हुए स्थान से भी हमारे यज्ञ में आओ. हे मधुविद्या जानने वालो! तुम हमारी पुकार सुनो. (७)
O aschinikumaro! Come to this yajna. O you who are the truth! Don't be devoid of desire for us. O Aparajito and Swamiyo! You come to our yagna even from the hidden place. O you who know honey! You hear our call. (7)