ऋग्वेद (मंडल 5)
स हि रत्ना॑नि दा॒शुषे॑ सु॒वाति॑ सवि॒ता भगः॑ । तं भा॒गं चि॒त्रमी॑महे ॥ (३)
सविता एवं भग नामक देव हव्यदाता यजमान को धन प्रदान करते हैं. हम उनसे विचित्र धन की कामना करते हैं. (३)
The gods named Savita and Bhaga provide money to the havandata host. We wish them a strange wealth. (3)