ऋग्वेद (मंडल 7)
कु॒विद॒ङ्ग नम॑सा॒ ये वृ॒धासः॑ पु॒रा दे॒वा अ॑नव॒द्यास॒ आस॑न् । ते वा॒यवे॒ मन॑वे बाधि॒तायावा॑सयन्नु॒षसं॒ सूर्ये॑ण ॥ (१)
प्राचीन काल में जिन वयोवृद्ध स्तोताओं ने वायु देव के हेतु शीघ्र बनाए गए बहुत से स्तोत्रों द्वारा प्रसिद्धि प्राप्त की, उन्होंने विपत्ति में पड़े मनुष्यों की रक्षा के निमित्त वायु को हव्य देने के लिए सूर्य के साथ उषा को संगत किया. (१)
In ancient times, the veteran stoetas who rose to fame with many of the earliest made for the vayu dev, sanguine with the sun to give a tribute to the air in order to protect the human beings in distress. (1)
ऋग्वेद (मंडल 7)
उ॒शन्ता॑ दू॒ता न दभा॑य गो॒पा मा॒सश्च॑ पा॒थः श॒रद॑श्च पू॒र्वीः । इन्द्र॑वायू सुष्टु॒तिर्वा॑मिया॒ना मा॑र्डी॒कमी॑ट्टे सुवि॒तं च॒ नव्य॑म् ॥ (२)
हे कामना करने योग्य, गतिशील एवं रक्षक इंद्र व वायु! तुम हमारी हिंसा न करके अनेक मासों एवं वर्षो तक हमारी रक्षा करना. हमारी शोभनस्तुति समीप जाती हुई तुमसे सुख एवं प्रशंसायोग्य उत्तम धन की याचना करती है. (२)
O wishable, dynamic and protector Indra and the wind! You must protect us for many months and years without violence. Our adornment approaches and asks you for happiness and praiseworthy good wealth. (2)
ऋग्वेद (मंडल 7)
पीवो॑अन्नाँ रयि॒वृधः॑ सुमे॒धाः श्वे॒तः सि॑षक्ति नि॒युता॑मभि॒श्रीः । ते वा॒यवे॒ सम॑नसो॒ वि त॑स्थु॒र्विश्वेन्नरः॑ स्वप॒त्यानि॑ चक्रुः ॥ (३)
शोभनबुद्धि वाले एवं अपने घोड़ों को आश्रय देने वाले श्वेतवर्ण वायु अधिक अन्न के स्वामी एवं धनसंपन्न व्यक्तियों की सेवा करते हैं. समान मन वाले वे लोग भी वायु के लिए यज्ञ करने के विचार से स्थित हैं एवं अपनी संतान को लाभ देने वाले कार्य कर चुके हैं. (३)
The white-coloured air, who is well-tempered and shelters his horses, serves the masters and wealthy people of more food. Those people with equal mind are also situated with the idea of performing yajna for the wind and have done things that benefit their children. (3)
ऋग्वेद (मंडल 7)
याव॒त्तर॑स्त॒न्वो॒३॒॑ याव॒दोजो॒ याव॒न्नर॒श्चक्ष॑सा॒ दीध्या॑नाः । शुचिं॒ सोमं॑ शुचिपा पातम॒स्मे इन्द्र॑वायू॒ सद॑तं ब॒र्हिरेदम् ॥ (४)
हे पवित्र सोमरस को पीने वाले इंद्र एवं वायु! जब तक तुम्हारे शरीर की गति है, जब तक बल है एवं जब तक ऋत्विज् ज्ञानरूपी बल से दीप्तिशाली हैं, तब तक तुम हमारे पवित्र सोमरस को पिओ एवं इन कुशों पर बैठो. (४)
O Indra and Air who drink the holy Somras! As long as your body is moving, as long as there is strength, and as long as the ritwijas are illuminated by the force of knowledge, then drink our holy somras and sit on these kushas. (4)
ऋग्वेद (मंडल 7)
नि॒यु॒वा॒ना नि॒युतः॑ स्पा॒र्हवी॑रा॒ इन्द्र॑वायू स॒रथं॑ यातम॒र्वाक् । इ॒दं हि वां॒ प्रभृ॑तं॒ मध्वो॒ अग्र॒मध॑ प्रीणा॒ना वि मु॑मुक्तम॒स्मे ॥ (५)
हे स्पृहायोग्य स्तोताओं वाले इंद्र एवं वायु! अपने घोड़ों को एक ही रथ में जोड़ो एवं हमारे सामने लाओ. इस मधुर सोमरस का उत्तम भाग तुम्हारे निमित्त है. तुम इसे पीकर प्रसन्न बनो एवं हमें पापों से छुड़ाओ. (५)
These are the indra and the air with the eloquent hymns! Add your horses to the same chariot and bring them in front of us. The best part of this sweet somras is for you. Be happy to drink it and deliver us from our sins. (5)
ऋग्वेद (मंडल 7)
या वां॑ श॒तं नि॒युतो॒ याः स॒हस्र॒मिन्द्र॑वायू वि॒श्ववा॑राः॒ सच॑न्ते । आभि॑र्यातं सुवि॒दत्रा॑भिर॒र्वाक्पा॒तं न॑रा॒ प्रति॑भृतस्य॒ मध्वः॑ ॥ (६)
हे इंद्र एवं वायु! सबके द्वारा वरण करने योग्य तुम्हारे जो घोड़े सैकड़ों तथा हजारों की संख्या में तुम्हारी सेवा करते हैं, उन्हीं शोभन धनदाता अश्चों की सहायता से तुम हमारे सामने आओ. हे नेताओ! उत्तर-वेदी पर लाए गए सोम को पिओ. (६)
O Indra and Air! Come before us with the help of the same rich rich-giving asas, the horses that serve you in hundreds and thousands of yours that are chosen by all. Hey leaders! Drink the mon brought to the north-altar. (6)
ऋग्वेद (मंडल 7)
अर्व॑न्तो॒ न श्रव॑सो॒ भिक्ष॑माणा इन्द्रवा॒यू सु॑ष्टु॒तिभि॒र्वसि॑ष्ठाः । वा॒ज॒यन्तः॒ स्वव॑से हुवेम यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥ (७)
घोड़ों के समान हव्य वहन करने वाले, अन्न की प्रार्थना करने वाले एवं बल के इच्छुक वसिष्ठगण शोभनरक्षा के निमित्त उत्तम स्तुतियों द्वारा इंद्र एवं वायु को बुलाते हैं. हे देवो! तुम कल्याणसाधनों द्वारा हमारी सदा रक्षा करो. (७)
Vasishthas, who carry the same as horses, pray for food and are desirous of strength, call Indra and Vayu with good praises for the sake of adornment. Oh, God! You always protect us by means of welfare. (7)