ऋग्वेद (मंडल 8)
यस्या॒ग्निर्वपु॑र्गृ॒हे स्तोमं॒ चनो॒ दधी॑त वि॒श्ववा॑र्यः । ह॒व्या वा॒ वेवि॑ष॒द्विषः॑ ॥ (११)
जिस यजमान के घर में सबके द्वारा वरणीय रूप वाले अग्ने स्तोत्र व अन्न स्वीकार करते हैं, उसका हृदय देवों के पास जाता है. (११)
In the house of the host in which the agnes of the chosen form of all accepts the hymns and food, his heart goes to the gods. (11)