हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
यु॒क्ष्वा हि दे॑व॒हूत॑मा॒ँ अश्वा॑ँ अग्ने र॒थीरि॑व । नि होता॑ पू॒र्व्यः स॑दः ॥ (१)
हे अग्नि! रथी जिस प्रकार घोड़ों को रथ में जोड़ता है, उसी प्रकार तुम भी देवों को बुलाने में कुशल अपने घोड़ों को रथ में जोड़ो. तुम प्रधान होता बनकर बैठो. (१)
O agni! Just as the charioter adds horses to the chariot, so you also add your horses to the chariot, skilled in calling the gods. You sit down as the chief. (1)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
उ॒त नो॑ देव दे॒वाँ अच्छा॑ वोचो वि॒दुष्ट॑रः । श्रद्विश्वा॒ वार्या॑ कृधि ॥ (२)
हे अग्नि देव! तुम देवों के समीप हमें अधिक विद्वान्‌ बताओ एवं हमारे वरणयोग्य धन को देवों के पास पहुंचाओ. (२)
O God of agni! You tell us more scholars near the gods and bring our worth of wealth to the gods. (2)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
त्वं ह॒ यद्य॑विष्ठ्य॒ सह॑सः सूनवाहुत । ऋ॒तावा॑ य॒ज्ञियो॒ भुवः॑ ॥ (३)
हे अतिशय युवा, बल के पुत्र एवं सब ओर से बुलाए गए अग्नि! तुम सत्ययुक्त एवं यज्ञ के योग्य हो. (३)
O ye of the most young, the son of strength, and the agni called from all sides! You are truthful and worthy of yajna. (3)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
अ॒यम॒ग्निः स॑ह॒स्रिणो॒ वाज॑स्य श॒तिन॒स्पतिः॑ । मू॒र्धा क॒वी र॑यी॒णाम् ॥ (४)
ये अग्नि सैकड़ों और हजारों प्रकार के अन्नों के पालक, श्रेष्ठ, मेधावी एवं धनों के स्वामी हैं. (४)
These agnis are the guardians, the best, the brightest and the masters of wealth of hundreds and thousands of types of food. (4)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
तं ने॒मिमृ॒भवो॑ य॒था न॑मस्व॒ सहू॑तिभिः । नेदी॑यो य॒ज्ञम॑ङ्गिरः ॥ (५)
हे गतिशील अग्नि! ऋभुगण जिस प्रकार रथ की नेमि को लाते हैं, उसी प्रकार तुम अन्य देवों के साथ यज्ञ को लाओ. (५)
O dynamic agni! Just as the Sages bring the name of the chariot, so you bring the yajna with other gods. (5)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
तस्मै॑ नू॒नम॒भिद्य॑वे वा॒चा वि॑रूप॒ नित्य॑या । वृष्णे॑ चोदस्व सुष्टु॒तिम् ॥ (६)
हे विरूप नामक ऋषि! तुम नित्य वचनों द्वारा दीप्तिशाली एवं वर्षाकारक अग्नि की शोभन स्तुति करो. (६)
O sage named Virup! Praise the glorious and rain-burning agni with the usual words. (6)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
कमु॑ ष्विदस्य॒ सेन॑या॒ग्नेरपा॑कचक्षसः । प॒णिं गोषु॑ स्तरामहे ॥ (७)
हम बड़ी आंखों वाले अग्नि की ज्वालारूपी सेनाओं द्वारा गायों की प्राप्ति के लिए किस पणि की हिंसा करेंगे? (७)
Which commodity will we do to violence for the recovery of cows by the blazing armies of the big-eyed agni? (7)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
मा नो॑ दे॒वानां॒ विशः॑ प्रस्ना॒तीरि॑वो॒स्राः । कृ॒शं न हा॑सु॒रघ्न्याः॑ ॥ (८)
हे अग्नि! हम देवपरिचारकों को उसी प्रकार न छोड़ें, जिस प्रकार लोग दुधारू गाय को नहीं छोड़ते अथवा गाएं अपने छोटे बछड़ों को नहीं छोड़तीं. (८)
O agni! Let us not leave the deities in the same way that people do not leave the milch cow or sing their little calves. (8)
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