ऋग्वेद (मंडल 8)
क॒था नू॒नं वां॒ विम॑ना॒ उप॑ स्तवद्यु॒वं धियं॑ ददथु॒र्वस्य॑इष्टये । ता वां॒ विश्व॑को हवते तनूकृ॒थे मा नो॒ वि यौ॑ष्टं स॒ख्या मु॒मोच॑तम् ॥ (२)
हे अश्विनीकुमारो! विमना नामक ऋषि ने किस प्रकार तुम्हारी स्तुति की थी, कि तुमने उसे धन देने के लिए अपने मन में निश्चय किया? उसी प्रकार मैं विश्वक ऋषि तुम्हें बुलाता हूं. हमारी मित्रता न छूटे. यहां आकर तुम अपने घोड़ों की लगाम अलग करो. (२)
O Ashwinikumaro! How did the sage named Vimana praise you, that you decided in your heart to give him money? In the same way, I call you the sage of The World. Don't miss our friendship. Come here and separate the reins of your horses. (2)