हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
त्वम॑ग्ने बृ॒हद्वयो॒ दधा॑सि देव दा॒शुषे॑ । क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा॑ ॥ (१)
हे दीप्तियुक्त, क्रांतकर्म वाले, गृहपालक व नित्ययुवा अग्नि! तुम इव्य देने वाले यजमान को अधिक अन्न देते हो. (१)
O you who are glorious, revolutionary, homeowners and the eternal agni! You give more food to the god-giving host. (1)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
स न॒ ईळा॑नया स॒ह दे॒वाँ अ॑ग्ने दुव॒स्युवा॑ । चि॒किद्वि॑भान॒वा व॑ह ॥ (२)
हे विशिष्ट दीप्ति वाले अग्नि! तुम जानने वाले बनकर हमारे सेवापूर्ण एवं स्तुतियुक्त वचनों से देवों को यहां लाओ. (२)
O agni with a special radiance! You, as knowers, bring the gods here with our serviceful and praiseworthy words. (2)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
त्वया॑ ह स्विद्यु॒जा व॒यं चोदि॑ष्ठेन यविष्ठ्य । अ॒भि ष्मो॒ वाज॑सातये ॥ (३)
हे अतिशय युवा एवं धनप्रेरकों में श्रेष्ठ अग्नि! हम तुम्हें सहायक के रूप में पाकर अन्न पाने के लिए शत्रुओं को पराजित करेंगे. (३)
O the best agni among the very young and wealthy motivators! We will defeat the enemies to get food by getting you as helpers. (3)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
औ॒र्व॒भृ॒गु॒वच्छुचि॑मप्नवान॒वदा हु॑वे । अ॒ग्निं स॑मु॒द्रवा॑ससम् ॥ (४)
मैं समुद्र में रहने वाले एवं शुद्ध अग्नि को और्व, भृगु और अप्नवान ऋषियों के साथ बुलाता हूं. (४)
I call the pure agni that dwells in the sea and with the sages of Aurva, Bhrigu and Apanavan. (4)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
हु॒वे वात॑स्वनं क॒विं प॒र्जन्य॑क्रन्द्यं॒ सहः॑ । अ॒ग्निं स॑मु॒द्रवा॑ससम् ॥ (५)
मैं वायु के समान शब्द करने वाले, कवि, मेघ के समान गर्जन करने वाले, बली एवं समुद्र में निवास करने वाले अग्नि को बुलाता हूं. (५)
I call the sound of the wind, the poet, the roaring like the cloud, the bali and the agni that dwells in the sea. (5)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
आ स॒वं स॑वि॒तुर्य॑था॒ भग॑स्येव भु॒जिं हु॑वे । अ॒ग्निं स॑मु॒द्रवा॑ससम् ॥ (६)
मैं सागर में रहने वाले अग्नि को सूर्य के जन्म एवं भग नामक देव के भाग के समान बुलाता हूं. (६)
I call the agni in the ocean as the birth of the sun and the part of a god named Bhaga. (6)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
अ॒ग्निं वो॑ वृ॒धन्त॑मध्व॒राणां॑ पुरू॒तम॑म् । अच्छा॒ नप्त्रे॒ सह॑स्वते ॥ (७)
हे ऋत्विजो! तुम शक्तिशालियों के बंधु, बलवान्‌, ज्वालाओं द्वारा बढ़ते हुए व अतिशय विशाल अग्नि के समीप जाओ. (७)
Hey Ritvijo! You are the brothers of the mighty ones, the rebels, growing by the flames and approaching the very great agni. (7)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
अ॒यं यथा॑ न आ॒भुव॒त्त्वष्टा॑ रू॒पेव॒ तक्ष्या॑ । अ॒स्य क्रत्वा॒ यश॑स्वतः ॥ (८)
हे ऋत्विजो! अग्नि के समीप इस प्रकार जाओ कि अग्नि हमारे कर्त्तव्यो को बढ़ावें. हम अग्नि संबंधी यज्ञको से अन्न वाले बनेंगे. (८)
Hey Ritvijo! Go near the agni in such a way that the agni increases our duty. We will become food-eaters from the agni-related yagnas. (8)
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