हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
अद॑र्शि गातु॒वित्त॑मो॒ यस्मि॑न्व्र॒तान्या॑द॒धुः । उपो॒ षु जा॒तमार्य॑स्य॒ वर्ध॑नम॒ग्निं न॑क्षन्त नो॒ गिरः॑ ॥ (१)
यजमान जिन अग्ने में यज्ञकर्मो का आह्वान करता है, वे ही मार्ग को जानने वालों में श्रेष्ठ उत्पन्न हुए हैं. आर्यो को बढ़ाने वाले एवं उत्पन्न अग्नि के समीप हमारी स्तुतियां जाती हैं. (१)
The agne in which the host invokes the yagnakarmo have been the best of those who know the way. Our praises go near the agni that propels the Aryans and the agni that is produced. (1)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
प्र दैवो॑दासो अ॒ग्निर्दे॒वाँ अच्छा॒ न म॒ज्मना॑ । अनु॑ मा॒तरं॑ पृथि॒वीं वि वा॑वृते त॒स्थौ नाक॑स्य॒ सान॑वि ॥ (२)
दिवोदास के द्वारा बुलाए हुए अग्नि ने पृथ्वी माता के सामने यज्ञ में देवों के लिए हव्य वहन नहीं किया, क्योंकि दिवोदास ने अग्नि को बलपूर्वक बुलाया था. अग्नि स्वर्ग के ऊंचे स्थान पर ही रहे. (२)
Agni, called by Divodas, did not bear the vow for the gods in the yagna in front of Mother Earth, because Divodas had called agni by force. The agni remained at the highest place of heaven. (2)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
यस्मा॒द्रेज॑न्त कृ॒ष्टय॑श्च॒र्कृत्या॑नि कृण्व॒तः । स॒ह॒स्र॒सां मे॒धसा॑ताविव॒ त्मना॒ग्निं धी॒भिः स॑पर्यत ॥ (३)
हे मनुष्यो! कर्त्तव्य यज्ञकर्म करने वाले लोगों से अन्य प्रजाएं कांपती हैं, इसलिए हजारों संपत्तियों के देने वाले अग्नि की सेवा तुम स्वयं अपने कर्मों द्वारा करो. (३)
O men! Other people tremble with those who perform the duty yajna karma, so serve the agni that gives thousands of wealth through your own karma. (3)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
प्र यं रा॒ये निनी॑षसि॒ मर्तो॒ यस्ते॑ वसो॒ दाश॑त् । स वी॒रं ध॑त्ते अग्न उक्थशं॒सिनं॒ त्मना॑ सहस्रपो॒षिण॑म् ॥ (४)
हे निवासस्थान देने वाले अग्नि! तुम अपने जिस स्तोता को धन देने के हेतु सबका नेता बनाना चाहते हो, एवं जो स्तोता तुम्हारे लिए हव्य देता है, वह अपने आप ही उक्थमंत्रों का बोलने वाला, हजारों का पोषण करने वाला एवं वीर पुत्र प्राप्त करता है. (४)
O agni that gives the abode! The hymn you want to make your leader of all to give money to, and the hymn that you wish for you, he himself receives a son of a speaker of the uquth mantras, the nurturer of thousands, and the heroic son. (4)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
स दृ॒ळ्हे चि॑द॒भि तृ॑णत्ति॒ वाज॒मर्व॑ता॒ स ध॑त्ते॒ अक्षि॑ति॒ श्रवः॑ । त्वे दे॑व॒त्रा सदा॑ पुरूवसो॒ विश्वा॑ वा॒मानि॑ धीमहि ॥ (५)
हे विशाल धन वाले अग्नि! जो यजमान तुम्हें हव्य देता है, वह शत्रु की दृढ़ नगरी में भी स्थित अन्न को अपने घोड़ों द्वारा नष्ट करता है तथा क्षीण न होने वाला अन्न धारण करता है. हम भी तुम में स्थित सभी उत्तम धनों को प्राप्त करेंगे. (५)
O agni with huge wealth! The host who gives you the havya destroys the food also in the fortified city of the enemy by his horses and holds the unstainable food. We will also receive all the best wealth located in you. (5)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
यो विश्वा॒ दय॑ते॒ वसु॒ होता॑ म॒न्द्रो जना॑नाम् । मधो॒र्न पात्रा॑ प्रथ॒मान्य॑स्मै॒ प्र स्तोमा॑ यन्त्य॒ग्नये॑ ॥ (६)
देवों को बुलाने वाले व प्रसन्न, जो अग्नि मनुष्यों को अन्न देते हैं, उन्हीं अग्नि को नशीले सोमरस के प्रथम पात्र प्राप्त होते हैं. (६)
Those who call upon the gods and are happy, the agni that gives food to men, the same agni receives the first vessels of the intoxicating somras. (6)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
अश्वं॒ न गी॒र्भी र॒थ्यं॑ सु॒दान॑वो मर्मृ॒ज्यन्ते॑ देव॒यवः॑ । उ॒भे तो॒के तन॑ये दस्म विश्पते॒ पर्षि॒ राधो॑ म॒घोना॑म् ॥ (७)
हे दर्शनीय एवं प्रजाओं के पालक अग्नि! शोभनदान वाले एवं देवों की अभिलाषा करने वाले यजमान स्तुतियों द्वारा उसी प्रकार तुम्हारी सेवा करते हैं, जिस प्रकार रथ खींचने वाले घोड़े की सेवा की जाती है. तुम यजमानों के पुत्रों और पौत्रों को धन वालों का धन दो. (७)
O agni, the guardian of the people and the seer of the people! Hosts who are adorned and wish for the gods serve you by praise, just as the horse that pulls the chariot is served. Give the sons and grandsons of the hosts the wealth of those who have wealth. (7)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
प्र मंहि॑ष्ठाय गायत ऋ॒ताव्ने॑ बृह॒ते शु॒क्रशो॑चिषे । उप॑स्तुतासो अ॒ग्नये॑ ॥ (८)
हे स्तोताओ! तुम दाताओं में श्रेष्ठ, यज्ञस्वामी, महान्‌ व दीप्त तेज वाले अग्नि की स्तुति करो. (८)
This stotao! Praise the agni of the best of the givers, the yajnaswami, the great and the brightest. (8)
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