हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 59
पव॑स्व गो॒जिद॑श्व॒जिद्वि॑श्व॒जित्सो॑म रण्य॒जित् । प्र॒जाव॒द्रत्न॒मा भ॑र ॥ (१)
हे गायों, घोड़ों, संसार एवं रमणीय धन को जीतने वाले सोम! तुम नीचे की ओर गिरो. (१)
O Mon who conquers cows, horses, worlds and delightful wealth! You fall down. (1)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 59
पव॑स्वा॒द्भ्यो अदा॑भ्यः॒ पव॒स्वौष॑धीभ्यः । पव॑स्व धि॒षणा॑भ्यः ॥ (२)
हे सोम! तुम जल, किरणों, ओषधियों एवं पत्थरों से नीचे की ओर बहो. (२)
Hey Mon! You flow downwards from water, rays, herbs and stones. (2)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 59
त्वं सो॑म॒ पव॑मानो॒ विश्वा॑नि दुरि॒ता त॑र । क॒विः सी॑द॒ नि ब॒र्हिषि॑ ॥ (३)
हे निचुड़ते हुए सोम! तुम राक्षसों द्वारा होने वाले सभी उपद्रव नष्ट करो. हे क्रांत कर्मो वाले सोम! तुम कुशों पर बैठी. (३)
O swollen Mon! Destroy all the fuss you caused by monsters. O mon of deeds! You sat on the kushas. (3)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 59
पव॑मान॒ स्व॑र्विदो॒ जाय॑मानोऽभवो म॒हान् । इन्दो॒ विश्वा॑ँ अ॒भीद॑सि ॥ (४)
हे निचुड़ते हुए सोम! तुम यजमान को सब कुछ दो. तुम उत्पन्न होते ही महान्‌ हो गए थे. दीप्तिशाली सोम! तुम सब शत्रुओं को अपने तेज से पराजित करते हो. (४)
Oh, lingering Mon! You give everything to the host. You were great when you were born. Radiant Mon! You defeat all the enemies with your own speed. (4)