ऋग्वेद (मंडल 9)
व॒यं ते॑ अ॒स्य वृ॑त्रह॒न्वसो॒ वस्वः॑ पुरु॒स्पृहः॑ । नि नेदि॑ष्ठतमा इ॒षः स्याम॑ सु॒म्नस्या॑ध्रिगो ॥ (५)
हे शत्रुनाशक सोम! हम तुम्हारे हैं. हे निवासस्थान देने वाले सोम! हम तुम्हारे द्वारा प्रदत्त एवं बहुतों द्वारा अभिलाषा योग्य धन के बहुत पास रहें. हे अबाध गति वाले सोम! हम सुख के बहुत पास रहें. (५)
O enemy-destroying Mon! We are yours. O Mon who gives the abode! May we be very close to the money you have given and desired by many. O unchallenged Mon! Let's be very close to happiness. (5)