हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 15.1.2

अध्याय 15 → खंड 1 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 15)

सामवेद: | खंड: 1
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्रनीथः पदवीः कवीनाम् । तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप् ॥ (२)
हे सोम! आप ऋषियों जैसे मन वाले और उन जैसा गुण प्रदान करने वाले हैं. आप तीसरे धाम के राजा इंद्र को और तेजस्वी बनाने वाले हैं. आप कवियों की पदवी और सहस्रकर्मा हैं. (२)
O Mon! You are like sages with a mind and a quality like them. You are going to make Indra, the king of the third dham, more stunning. You are the title of poet and sahasrakarma. (2)